
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दो दिवसीय साइप्रस यात्रा ने अंतरराष्ट्रीय मंच पर हलचल मचा दी है। इस यात्रा को सिर्फ एक औपचारिक दौरे के रूप में नहीं, बल्कि तुर्की के खिलाफ रणनीतिक संदेश के रूप में देखा जा रहा है।
तुर्की-पाक गठजोड़ पर भारत का करारा जवाब?
तुर्की लगातार कश्मीर मुद्दे पर पाकिस्तान का समर्थन करता रहा है, साथ ही ऑपरेशन सिंदूर के दौरान भी तुर्की ने भारत विरोधी सुर अपनाए थे। इसके अलावा, तुर्की ने पाकिस्तान को सैन्य उपकरण और ड्रोन सप्लाई कर भारत की सुरक्षा चिंताओं को और बढ़ाया। ऐसे में माना जा रहा है कि PM मोदी की यह यात्रा सीधा कूटनीतिक संदेश है कि भारत भी तुर्की के खिलाफ मोर्चा खोल सकता है।
साइप्रस का साथ, तुर्की पर दबाव
तुर्की और साइप्रस के बीच सीमा विवाद और ज़मीनी कब्जे की लड़ाई दशकों से चल रही है। तुर्की ने 1974 के बाद से साइप्रस के उत्तरी हिस्से पर कब्जा कर रखा है, जिसे अंतरराष्ट्रीय समुदाय मान्यता नहीं देता। ऐसे में PM मोदी का साइप्रस पहुंचना न सिर्फ राजनीतिक रूप से अहम है, बल्कि इससे भारत-साइप्रस संबंधों को मजबूती और तुर्की पर दबाव बनाने की रणनीति भी साफ झलकती है।
जियोपॉलिटिक्स में भारत की आक्रामक कूटनीति
मोदी सरकार अब रक्षात्मक कूटनीति के बजाय आक्रामक रणनीति अपना रही है, जो पाक-तुर्क गठबंधन को संतुलित करने और भारत के वैश्विक प्रभाव को बढ़ाने में अहम साबित हो सकती है।