प्रयागराज महाकुम्भ: आस्था, परम्परा और व्यवस्थाओं की जटिलताएं

यहां कल्पवास करने आये सोरांव के राज उजागर कहते हैं, इस बार बड़का कुम्भ बा, एही से हम आठ जनवरी का हियां आय गये।

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ ।।

को कहि सकइ प्रयाग प्रभाऊ, कलुष पुंज कुंजर मृगराऊ।।

रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास ने तीर्थराज प्रयाग के प्रभाव का वर्णन करते हुए लिखा है, पापों के समूह रूपी हाथी को मारने के लिए सिंह रूपी प्रयागराज के प्रभाव का बखान भला कौन कर सकता है। ऐसे सुहावने तीर्थराज का दर्शन कर सुख के समुद्र का सुख रघुकुल श्रेष्ठ श्रीराम चन्द्र जी ने भी प्राप्त किया था। इसी सुख की कामना के लिये 44 करोड़ श्रद्धालु महाकुम्भ में स्रान के लिए आज पौष पूर्णिमा से प्रयाग की तरफ अग्रसर होंगे और सवा महीने तक उनका पुण्य प्राप्ति के लोभ में तीर्थराज में आना अनवरत जारी रहेगा।

चीनी यात्री ह्वेन त्सांग ने 700 ईस्वी में कुम्भ मेले का आंखों देखा जो विवरण किया है उसके मुताबिक सम्राट हर्षवर्धन के काल में सैकड़ों ब्राह्मण संगम पर ईश्वरीय अराधना के क्रम में खुद को शारीरिक यंत्रणाएं दिया करते थे। उनका मुख्य लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति था। उनकी यह धारणा थी कि संगम पर यदि प्राण छूटेंगे तो उन्हें मोक्ष की प्राप्ति होगी। जो श्रद्धालु इस प्रकार मोक्ष सिद्ध रना चाहते थे। वो एक सप्ताह तक व्रत रखते थे और सातवें दिन संगम की बीच धारा में जल समाधि ले लिया करते थे। कुछ ऐसे भी होते थे जो संगम में एक खंभा गाड़ कर सूर्योदय के समय एक पैर व एक हाथ के सहारे उस खंभे पर खड़े हो कर सूर्य को टकटकी लगा कर देखा करते थे और सूर्यास्त के समय नीचे उतर आया करते थे। उनकी यह धारणा हुआ करती थी कि ऐसा करने से वो जन्म और मृत्यु के आवागमन से मुक्त हो जाएंगे।

तीर्थराज प्रयाग में 13 जनवरी से पौष पूर्णिमा के स्रान के साथ ही महाकुम्भ प्रारंभ होगा। विभिन्न जातियों, भाषाओं और प्रान्तों से यहां आने वाले 44 करोड़ लोगों का भी यहां ऐसा अद्भुत संगम होगा जो विश्व में कभी कहीं आयोजित होने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। गंगा और यमुना के तट पर प्रत्येक 12 वर्ष बाद आयोजित होने वाले महाकुम्भ की पहचान, धर्म सम्राटों, नागा साधुओं, साधुओं और कल्पवासियों से होती आई है। इस बार 144 वर्ष बाद आयोजित होने वाले महाकुम्भ में व्यवस्था के साथ अव्यवस्था भी है। दस जोन और 25 सेक्टरों का विस्तार लिये इस कुम्भ के सेक्टर छह, साल और आठ में अव्यवस्था अधिक है। यह वो सेक्टर हैं जिन्हे प्रयागवाल को आवंटित किया गया है।

इन्हीं पण्डों के यहां आ कर श्रद्धालु सवा महीने तक आयोजित होने वाले इस विशाल मेले में कल्पवास करते हैं। यहां के गाय-बछड़ा निशान के गोपाल जी पण्डा कहते हैं, सड़क पर पानी के पाइप खुले पड़े हैं। पूरे इलाके के अधिकांश हिस्से में अभी तक पीने के पानी की व्यवस्था नहीं हो पाई है। इस वजह से कल्पवासियों को काफी दूर से अपने दैनिक कार्यों के लिए जल ले कर आना पड़ रहा है। इन सेक्टरों में 700 प्रयागवालों को स्थान दिया गया है। उनके शिविर यहां लगाये गये हैं। जिनमें करीब पौने दो लाख कल्पवासी कल्पवास करेंगे। लेकिन उनके लिए जल की व्यवस्था अभी तक सरकार करवा नहीं सकी है।

यहां कल्पवास करने आये सोरांव के राज उजागर कहते हैं, इस बार बड़का कुम्भ बा, एही से हम आठ जनवरी का हियां आय गये। लेकिन अब तक हम सबन का पियय के पानी नसीब नहीं भा। ऐसे में हम सब हियां तप करी की ढोय के पानी लाई। वहीं शंकरगढ़ के शिवराम कहते हैं, तीस वर्षों से हम और हमारा परिवार लगातार प्रयाग कल्पवास करने आ रहे हैं। लेकिन इस बार सरीखी लचर व्यवस्था जो कल्पवासियों को दी गई, वैसा कभी नहीं हुआ। प्रशासन का पूरा ध्यान संगम नोज और उसके आस-पास जहां वीवीआईपी और वीआईपी आएंगे, वहीं तक केन्द्रित है।

दरअसल, कुम्भ मेला एक महाकाव्य है। इसमें भजन भी है और कीर्तन भी। धर्म भी है और आस्था भी। विश्वास भी है और परम्परा भी। इन सब के साथ जो सबसे बड़ी चीज है वो है आपसी सदभाव। कोई कहीं से भी आये, किसी भी भाषा को बोलने वाला हो। किसी भी देवता का उपासक हो। उन सब का मुंह गंगा अपने आंचल से पोंछती हैं।

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