सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को हत्या के एक मामले में सुनवाई के दौरान उत्तर प्रदेश सरकार पर बेहद नाराजगी जाहिर की. मामला यूपी के बागपत जिले की बड़ौत तहसील से जुड़ा था जिसमें सुनवाई के दौरान शीर्ष अदालत ने हत्या के एक मामले में चार्जशीट दाखिल होने के बाद हत्या के आरोपी के कहने पर किसी दूसरी एजेंसी से आगे की जांच करने के आदेश पर यूपी सरकार पर बेहद नाराजगी व्यक्त की.
इतना ही नहीं, इसी मामले में देश की सर्वोच्च अदालत ने इलाहाबाद उच्च न्यायायलय न्यायलय पर भी नाराजगी व्यक्त की. अदालत की दो जजों वाली संवैधानिक पीठ ने कहा कि इलाहबाद हाई कोर्ट ने आरोपों की गंभीरता पर विचार किए बिना ही हत्या के इस मामले में आरोपी को जमानत दे दी गई.
दरअसल, साल 2022 में इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हत्या के एक मामले में, जिसमें आईपीसी की धारा 302 और 120 बी के तहत मामला दर्ज किया गया था, में मृतक के हत्यारोपी को जमानत दे दी थी. इसके बाद मृतक की मां ने इलाहबाद हाई कोर्ट के इस आदेश के खिलाफ देश की सर्वोच्च अदालत में एसएलपी दायर कर इस फैसले को चुनौती दी थी.
सोमवार को इसी एसएलपी पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. जस्टिस एमआर शाह और कृष्ण मुरारी की खंडपीठ ने एसएलपी पर सुनवाई की. न्यायमूर्ति एमआर शाह ने इस दौरान टिपण्णी करते हुए कहा कि उन्होंने अपने जीवन में आज तक कभी नहीं देखा कि हत्या के आरोपी के कहने पर किसी मामले की जांच कि दूसरी जांच एजेंसी को सौंप दी गई हो.
उन्होंने गृह सचिव से सवाल किया कि आखिर आरोपी के कहने पर मामले को कैसे स्थानांतरित कर दिया गया. उन्होंने अपनी टिपण्णी में आगे सवाल किया कि 482 सीआरपीसी याचिका खारिज होने के बाद गृह सचिव ने मामला दूसरी जांच एजेंसी को ट्रांसफर करने के लिए कैसे बाध्य किया? सुप्रीम कोर्ट की दो जजों वाली खंडपीठ ने उत्तरप्रदेश गृह सचिव के जांच ट्रांसफर के आदेश को निरस्त करते हुए आरोपी की जमानत भी रद्द कर दी.