महिलाओं से भेदभाव वाले हिंदू उत्तराधिकार कानून के प्रावधानों को चुनौती देने वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार को ने केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए चार हफ्ते का और वक़्त दिया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार के पास अपना रुख साफ करने का यह आखिरी मौका है, जवाब न आने की सूरत में कोर्ट आदेश पारित करेगा।
मुंबई की रहने वाली एक महिला ने सुप्रीम कोर्ट में 2016 में याचिका दाखिल किया है। याचिका में हिंदू उत्तराधिकार क़ानून के सेक्शन 15 और 16 को चुनौती दी है। इन क़ानूनी प्रावधानों के मुताबिक अगर किसी शादीशुदा निःसंतान पुरुष की मौत हो जाती है तो उसकी संपत्ति पर उसके माता-पिता का हक होता है। लेकिन महिला के मामले में ऐसा नहीं है। किसी निःसंतान विधवा की मौत के मामले में उसकी संपत्ति उसके माता-पिता के बजाय उसके पति के माता-पिता या रिश्तेदारों को मिलती है।
याचिका में कहा कि शादी के बाद उसकी बेटी की मौत हो गई थी और प्रॉपर्टी उसके पति और वहां के परिवार को मिली। बेटी की मां को कोई हक नहीं मिल पाया था। बाद में कोर्ट के बाहर समझौता तो हुआ लेकिन सुप्रीम कोर्ट की नजर में यह मुद्दा अहम रहा, ऐसे में इस पर सुनवाई शुरू हुई।
पहले जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस सूर्यकांत की बेंच ने कहा था कि इस मामले में एक सेक्शन के संवैधानिक वैधता पर ही सवाल उठ गए हैं, ऐसे में लंबी सुनवाई की जरूरत है। इसी वजह से इस केस को तीन-सदस्यीय बेंच को सौंप दिया गया है। पहले सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी पत्नी की मौत होती है और उसके पास अपने मायके (माता-पिता) की कोई प्रॉपर्टी है, तो उसका हक उन्हीं के पास जाएगा, वहीं अगर पति की मौत होती है तो हक उनके माता-पिता को मिलेगा।