सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड सुविधा बेपटरी, कहीं मशीन खराब तो कहीं स्टाफ की कमी…

बीते दिनों राज्य के अलग-अलग जिलों से अल्ट्रासाउंड मशीनों के खराब होने, ऑपरेटर्स की अनुपस्थिति और लैब टेक्नीशियन की कमी की खबरें आ रहीं थीं. शामली के सरकारी अस्पताल में जांच सुविधा ना होने से लोगों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ रहा था. इसके अलावा मुजफ्फरनगर, अमरोहा, मुरादाबाद, संतकबीरनगर, चित्रकूट, मऊ आदि जिलों मे मशीनें होने के बाद भी संचालन नहीं हो रहा है.

प्रदेश के सरकारी अस्पताल बुनियादी सुविधाओं की कमी से जूझ रहे हैं. कहीं दवाओं की गुणवत्ता से समझौता हो रहा है तो कहीं दवाएं ही नहीं हैं. इसी क्रम में मंगलवार को जानकारी प्राप्त हुई कि सरकारी अस्पतालों में अल्ट्रासाउंड सुविधा बेपटरी हो चुकी है. मामले को लेकर स्वास्थ्य महानिदेशक ने संचालन के बारे में अधीक्षकों से रिपोर्ट तलब की है.

बीते दिनों राज्य के अलग-अलग जिलों से अल्ट्रासाउंड मशीनों के खराब होने, ऑपरेटर्स की अनुपस्थिति और लैब टेक्नीशियन की कमी की खबरें आ रहीं थीं. शामली के सरकारी अस्पताल में जांच सुविधा ना होने से लोगों को दूसरे अस्पताल जाना पड़ रहा था. इसके अलावा मुजफ्फरनगर, अमरोहा, मुरादाबाद, संतकबीरनगर, चित्रकूट, मऊ आदि जिलों मे मशीनें होने के बाद भी संचालन नहीं हो रहा है.

इसके पीछे सबसे बड़ी वजह है कि अस्पतालों में मेडिकल तकनीकी स्टाफ की कमी है. प्रांतीय चिकित्सा सेवा संवर्ग में इन दिनों करीब 37 रेडियोलॉजिस्ट हैं. ऐसे में एक रेडियोलॉजिस्ट को दो से तीन सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की जिम्मेदारीदी गई है. 2- 2 दिन अलग-अलग सीएचसी पर रेडियोलॉजिस्ट सेवाएं दे रहे हैं. स्वास्थ्य विभाग के आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक विभाग के पास कुल 695 अल्ट्रासाउंड मशीनें हैं लेकिन कहीं मशीन खराब है तो कहीं रेडियोलॉजिस्ट ही नहीं है.

यूपी के सरकारी अस्पतालों की दुर्दशा जगजाहिर है. भले ही राज्य सरकार स्वास्थ्य को लेकर बड़े दावे क्यों ना करती हो लेकिन धरातल पर तस्वीरें कुछ और बयां करती हैं. ग्रामीण क्षेत्रों के पीएचसी, सीएचसी की तो और हालत खराब है. जिला अस्पतालों में कहीं डॉक्टर समय से नहीं आते तो कहीं मरीज के लिए जीवन रक्षक दवाएं भी बाहर से खरीदने के लिए कहा जाता है. ऐसे में स्वास्थ्य सेवाएं भगवान भरोसे संचालित हो रहीं हैं.

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