यूपी में हर राजनीतिक दल के क्यों चहेते हैं ओबीसी वोटर,जानिए क्या कहते हैं जातीय आंकडे ?

इन जातियों की संख्या ऐसी मानी जाती है,जो चुनावी माहौल में खेल को बना भी सकती है,और बिगाड़ भी सकती हैं.इसलिए भी जाति को सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता है.

डिजिटल डेस्क– 2024 का चुनाव…और चुनाव के लिए अभी से बिछती सिसायी बिसात पर हर किसी नजरें टिकी हुईं है. क्या धर्म की राजनीति, क्या जातीय समीकरण चुनाव के लिए ऐसे-ऐसे एजेंडे..जिसके बारे में अगर आम जनता सुने, तो उसका पहला रिएक्शन यहीं होगा की क्या ये राजनीति कर रहे हैं. अगर जनता के मुद्दों पर ध्यान देना हैं तो महंगाई..बेरोजगारी जैसी चीजों पर ध्यान देना चाहिए.इसी आम जनता के लिए जातिगत वाद-विवाद भी बड़ी चीज हैं.

क्योंकि छोटे-छोटे गांव और कस्बों में इन्हीं जातियों के फैक्टर को देखकर जनता वोट देती है.

अब 2024 के लोकसभा चुनाव में एक साल से भी कम वक्त बचा है. तो विपक्षी दल मोदी लहर को भी कमजोर करने के लिए अपने PDA फॉर्मूला का भरपूर इस्तेमाल करना चाह रहे हैं. और आगामी लोकसभा चुनाव को जीतने के लिए इसे एक मजबूत इक्का समझ रहे हैं.

जातियों पर पार्टियों का फोकस…

ऐसी क्या वजह है कि जो अलग-अलग जातियों पर हर पार्टी अपना फोकस कर रही है.पूर्वांचल में किसी की निगाहें लगी हैं तो पश्चिमी बेल्ट की ओर अपना खूटा मजबूत करने की राह बना रहा है.

लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक दलों के नेता एक दूसरे की जातियों को लेकर भी काफी ज्यादा कमेंट कर रहे हैं.यादव हो.कुर्मी हो,या फिर चाहे लोधी.

इन जातियों की संख्या ऐसी मानी जाती है,जो चुनावी माहौल में खेल को बना भी सकती है,और बिगाड़ भी सकती हैं.इसलिए भी जाति को सबसे महत्वपूर्ण समझा जाता है. चुनावी व्यवहार को समझने के लिए हर एक इलाके की जाति संरचना भी बहुत जरुरी है.

PDA फॉर्मूला कितना होगा सफल ?

जहां सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव,बीजेपी को आगामी चुनाव में धुल चटाने के लिए PDA फॉर्मूला के तहत काम करेंगी.अखिलेश के PDA फॉर्मूला में पिछड़ा वर्ग,दलित और अल्पसंख्यक वोटर्स आते हैं. चुनाव में दूसरी पार्टियों के वोटबैंक को साधने के लिए सपा ने ये फॉर्मूला फुल पूफ्र प्लान के साथ तैयार कर लिया है.जमीनी स्तर पर PDA को सफल बनाने के लिए सपा ने अपने कार्यकर्ताओं को चुनावी मैदान में अभी से उतार दिया है.

ओबीसी समुदाय भी बड़ा टारगेट
हालांकि यूपी में चुनाव के लिहाज से जातिगत समीकरण को साधना इतना आसानी भी नहीं है. लेकिन यूपी में लोधी समाज की भी काफी अहम भूमिका है. बता दें किअलीगढ़ के अतरौली से निकलकर कल्याण सिंह ने देश की राजनीति में एक मुकाम हासिल किया था. कल्याण सिंह की दूसरी पुण्यतिथि मनाई जा रही है.और वो लोधी समाज से ही आते थे. तो इसी वजह से भी लोधी समाज का जिक्र काफी ज्यादा हो गया है. बाकी विरोधी दलों की तरफ बीजेपी भी ओबीसी समुदाय के लोगों को टारगेट करने में लगी हुई है.

पश्चिमी यूपी के जाट वोट बैंक को साधने की कोशिश

आज कल्याण सिंह की पुण्यतिथि पर बीजेपी ने अलीगढ़ में कार्यक्रम को करते हुए एक बड़ा संदेश देने की कोशिश की है. यूपी में भाजपा को गैर यादव ओबीसी के बीच स्थापित करने में कल्याण सिंह की बड़ी भूमिका मानी जाती है. पश्चिमी यूपी में जाट वोट बैंक को साधने के लिए भाजपा की ओर से कोशिश लगातार की जा रही है.

पश्चिमी यूपी के अलीगढ़, बुलंदशहर, कासगंज, एटा और आसपास के जिलों के सामाजिक समीकरण को देखेंगे तो लोधी राजपूतों का इलाके में वर्चस्व दिखता है.

उत्तर प्रदेश में करीब 3 फीसदी वोट लोध समुदाय

बता दें कि उत्तर प्रदेश में करीब 3 फीसदी वोट लोध समुदाय के हैं.पश्चिमी यूपी के कई जिलों की लोकसभा सीटों और विधानसभा सीटों पर ये वोट निर्णायक भूमिका में है. पूरे यूपी की जनसंख्या में तो लोध समाज की संख्या बहुत कम दिखती है. मगर, 23 जिलों में ये चुनावों में जीत-हार का कारण बनते हैं.इससे पहले सुभासपा प्रमुख राजभर को बीजेपी ने अपने साथ लाकर ओबीसी जाति एक हिस्सा अपने खेमें में करने की कोशिश कर ली है.

खैर आगामी लोकसभा चुनाव में PDA और जातिगत एंगल खास महत्व रखता है ये तो साफ तौर पर दिखाई दे रहा है.इसी के साथ कौन सी जाति किस पार्टी के लिए उनके वोट पर चोट बनकर उभरेगी, ये तो आने वाला वक्त ही बताएगा.

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