
मेरठ में साल 1987 में हुए मलियाना दंगों के 40 आरोपियों को एडीजे अदालत ने 36 साल बाद बाइज्जत बरी कर दिया है. इस दंगे में 63 लोग मारे गये थे. किसी को गोली लगी, कोई पीट-पीटकर मार डाला गया तो कोई जलती आग में झौंक दिया गया थे. इस दंगे में पुलिस और पीएसी ने घरों में घुसकर गोलियां चलाई थी लेकिन कोर्ट केस में उसका नाम तक नही.
मेरठ के मलियाना के वकील अहमद अब 61 साल के हो चले है. वह 25 साल के थे जब 21 मई 1987 दंगे में उनकी दुकान लुट गयी. दो दिन बाद 23 मई 1987 को दंगाइयों और पीएसी ने मुहल्ले में घुसकर तांडव किया जिसमें उनके दो गोलियां लगी थी. इलाज में उनकी किडनी निकाल दी गयी. उस वक्त चारों ओर मौत बरस रही थी. कई कातिलों को उन्होने अपनी आंखों से देखा था जिनको वह पहचानते भी थे. अदालत में वह मुख्य गवाह थे. सवा साल की 56 तारीखों में हर रोज 4 से 5 घंटों तक उनकी गवाही हुई. लेकिन जब नतीजा आया तो उनके पैरो के नीचे जमीन गायब है.
21 मई 1987 को हाशिमपुरा दंगे में 42 मुस्लिमों को पीएसी ने घरों से खींचकर मार डाला. नरसंहार के रिएक्शन में मलियाना में भी अराजकता शुरू हो गयी थी. लेकिन इस अराजकता को रोकने के लिए पीएसी और पुलिस ने मलियाना के घरों में घुसकर गोलियां चलाई और 63 लोगो को मार डाला. सौ से ज्यादा लोग इस दंगे में बुरी तरह जख्मी हुए थे. पुलिस के फर्जीवाड़े की गवाह इस केस की तहरीर है जिसमें वोटरलिस्ट लेकर 93 लोगो को दंगाई बताते हुए नामजद किया गया था. इसमें कई लोग तो ऐसे थे जो दंगे के एक दशक पहले ही मर चुके थे. इंसाफ की लड़ाई में यह फर्जीवाड़ा भी पीड़ितों के खिलाफ गया.
36 साल से ऐसे बहुत से परिवार इंसाफ के मुंतजिर थे जिन्होने इस दंगे में अपनों को खोया था. लेकिन अपनी करतूतों को बेकसूर हिंदुओं पर थोपने वाली पुलिस ने जान-बूझकर इस केस की बुनियाद कमजोर कर दी थी. जाहिर तब की सरकार पुलिस के साथ खड़ी थी.
दंगे की जांच के लिए बने न्यायिक आयोग ने पीएसी, पुलिस पर सवाल खड़े किये, लेकिन तब की सरकार ने आयोग की रिपोर्ट दबाये रखी. कोर्ट में पहुंचे केस की फाइल से पहली एफआईआर ही गायब कर दी गयी. इसी दलील पर बरसों इस केस की सुनवाई ही नही हुई. पीड़ितों की ओर से 61 चश्मदीद गवाह थे लेकिन केवल 14 गवाहों की ही गवाही कराई गयी. केस के वादी याकूब अली को बरसों पता ही नही चला कि उनकी ओर से दर्ज एफआईआर में क्या लिखा है.
36 साल में 800 से ज्यादा तारीखों पर सुनवाई हुई. दर्जनों आरोपी मर गये और दर्जन भर पीड़ित और उनके परिवार भी इस दुनियां में नही है.
मुसलमानों की हिमायती कांग्रेस, मुलायम, अखिलेश और मायावती की सरकारों ने कभी दंगा पीड़ितों की मदद तो दूर, बात तक नही की. बेसहारा पीड़ित आज पूछ रहे है कि अगर आरोपी बेकसूर है तो 63 लोगो को किसने मारा.
रिपोर्ट- नरेन्द्र प्रताप