41 देशों से अधिक होगी इन तीन दिनों में महाकुंभ मेले की जनसंख्या, जानें शाही स्नान का महात्म्य और विज्ञान

कुंभ मेला भारत का ही नहीं बल्कि विश्व का सबसे प्राचीन मेला है, जो कि वैदिक ज्योतिष की गणितीय गणना के अनुसार लगता है, जिसकी अपनी एक अलग ही धार्मिक और वैज्ञानिक महत्ता है। आज का विज्ञान कहता है कि बृहस्पति ग्रह को सूर्य की परिक्रमा करने में पूरे 12 साल लगते हैं जो कि हमारे ऋषियों-मुनियों को हजारों वर्षों पहले से ही पता है। बता दें हर 12 वर्ष पर आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले का संबंध बृहस्पति ग्रह की गति से ही है। ज्योतिषीय गणना के अनुसार कुंभ मेले का आयोजन 4 स्थानों ( प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक और उज्जैन ) पर होता है। वर्ष 2025 में 13 जनवरी को पौष पूर्णिमा के दिन से महाकुंभ मेले का आयोजन प्रयागराज होना है, वहीं समापन 26 फरवरी महाशिवरात्रि व्रत के दिन शाही स्नान के बाद होगा।

महाकुंभ 2025 : विश्व का प्राचीन और सबसे बड़ा आध्यात्मिक समागम
उत्तर प्रदेश सरकार के एक आकलन के मुताबिक महाकुंभ मेला निर्विवाद रूप से हजारों वर्षों से आयोजित होने वाला पृथ्वी का सबसे बड़ा कार्यक्रम है। अगले वर्ष लगने वाला महाकुम्भ 45 दिनों का होगा, इन 45 दिनों में 45 करोड़ श्रद्‌धालुओं के आने का अनुमान है। इतने बड़े आयोजन के लिए मेला क्षेत्र 4,000 हेक्टेयर में फैला होगा, जिसे 25 सेक्टरों में बांटा गया है। प्रदेश सरकार का दावा है कि 03 दिन के लिए प्रयागराज की जनसंख्या दुनिया के 41 देशों से अधिक होगी। ये 03 दिन 29 जनवरी को मुख्य शाही स्नान पर्व मौनी अमावस्या से पहले और उसके बाद के होंगे। इन तीन दिनों में लगभग साढ़े छह करोड़ श्रद्‌धालुओं के प्रयागराज में होने की उम्मीद लगाई जा रही है।

जानें प्रयागराज मेला क्षेत्र के लिए क्या है योगी सरकार का बजट
वर्ष 2025 में आयोजित होने वाले महाकुंभ मेले की तैयारियों में प्रदेश सरकार कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, उत्तर प्रदेश सरकार ने महाकुंभ मेले के लिए वित्त वर्ष 2023-24 में ही बजट पेश कर दिया था। महाकुंभ मेले के लिए योगी सरकार ने फरवरी 2023 में योगी सरकार ने बताया था कि उन्होंने जो बजट पेश किया है, वह 2,500 करोड़ रुपये का है।

जानें क्यों करना चाहिए कुंभ स्नान और क्या है विज्ञान
हमारे देश के ऋषियों-मुनियों ने आज से लगभग हजारों वर्षों पहले ही ये बता दिया था कि हमारी पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है इसलिए यह एक ‘अपकेंद्रिय बल’ यानी केंद्र से बाहर की ओर फैलने वाली ऊर्जा पैदा करती है। पृथ्वी के 0-33 डिग्री अक्षांश में यह ऊर्जा हमारे तंत्र पर मुख्य रूप से लम्बवत व उर्ध्व दिशा में काम करती है। खास तौर से 11 डिग्री अक्षांश पर तो ऊर्जाएं बिलुकल सीधे ऊपर की ओर जाती हैं।


इसलिए हमारे देश के ऋषियों-मुनियों ने गुणा-भाग कर पृथ्वी पर ऐसी जगहों को तय किया, जहां इंसान पर किसी खास घटना का जबरदस्त प्रभाव पड़ता है। इनमें से अनेक जगहों पर नदियों का समागम है और इन स्थानों पर स्नान का विशेष महत्व और लाभ भी है। अगर किसी खास दिन कोई इंसान वहां रहता है तो उसके लिए दुर्लभ संभावनाओं के द्वार खुल जाते हैं। पंचांग और सौर माह की गणना पर आधारित तिथियों में होने वाले महाकुम्भ और उसके विभिन्न पवित्र स्नानों के महात्म्य को वैज्ञानिक भी अब तक नकार नहीं पाए हैं।

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