अपरिभाषित सीमा भारत-चीन विवाद की जड़, जानिए, LAC पर तनाव को कम करने के क्या है संभावित विकल्प…

, कुछ बाहरी मामलों से भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है. चीन और अमेरिका के बीच पिछले 2 सालों में जारी ट्रेड वॉर, हांगकांग में विद्रोही गतिविधियां और दुनिया में नंबर 1 बनने की देशों की ललक ऐसे विवादों की जड़ हैं. इस बीच कोरोना वायरस महामारी को भी चीन द्वारा छेड़े गए ऑर्गेनिक वॉर के तौर पर दुनिया ने देखा.

बीते 9 दिसंबर को अरुणाचल प्रदेश स्थित वास्तविक नियंत्रण रेखा यानी LAC के पास स्थित तवांग सेक्टर में भारतीय सेना और चीन के पीपल्स लिबरेशन आर्मी के बीच झड़प हो गई. इस मामले को लेकर रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने संसद में बयान दिया कि हमारे एक भी सैनिक गंभीर घायल नहीं हुए और चीन की सेना द्वारा स्टेटस क्यूओ को बदलने की कोशिश को हमारे जवानों ने विफल कर दिया.

यही नहीं भारतीय सेना के जवानों ने अदभुत पराक्रम और शौर्य का परिचय देते हुए चीनी सैनिकों को भागने पर मजबूर कर दिया. वहीं इस मामले को लेकर कुछ चीजें ऐसी हैं जो जाननी बहुत जरूरी हैं. इन मुद्दों का तवांग में हुए इंडो-चाइना फेस ऑफ से सीधा-सीधा संबंध है. तो आइए जानते हैं कि बार-बार एलएसी पर बढते तनाव के क्या समाधान हो सकते है.

9 दिसंबर को तवांग में भारत चीन सेनाओं के बीच हुई झड़प साल 2020 के बाद से इस तरह की पहली झड़प है जिसपर सरकार का चीन के प्रति रवैए को लेकर सवाल उठे हैं. साल 2020 के बाद से ऐसा पहली बार हो रहा है जब परमाणु संपन्न दोनों एशियाई देशों के बीच लंबी हिमालयी सीमा के पूर्वी छोर पर स्थित एक हिस्से को लेकर तनाव चरम पर पहुंचा है.

पूर्वोत्तर राज्य अरुणाचल प्रदेश का तवांग सेक्टर इंडियन टेरिटरी का एक ऐसा अटूट हिस्सा है जिसपर आए दिन चीन अपना दावा ठोकते रहता है. तवांग विवाद को छोड़ दें तो भारत की कोई भी सीमा इस जोखिम से खाली नहीं है कि पड़ोसी देश कब उसपर कब्जा जमाने या उसे अपना अहम हिस्सा बताने की हिमाकत कर बैठे.

जब हमारे पड़ोसी चीन और पाकिस्तान जैसे मुल्यहीन देश हो तो वहां पर यह एक ऐसी समस्या है जिससे हमेशा भारत को अखंडता और संप्रभुता को खतरा बने रहता है और यह समस्या है अपरिभाषित सीमाओं की. भारत सात देशों के साथ अंतर्राष्ट्रीय भूमि सीमाएं और दो देशों के साथ जल सीमाएं साझा करता है.

भारत पाकिस्तान, अफगानिस्तान, चीन, नेपाल, भूटान, म्यांमार और बांग्लादेश के साथ भूमि सीमा साझा करता है. भारत के पाकिस्तान, चीन, श्रीलंका और नेपाल के साथ ज्वलंत सीमा विवाद हैं. लेकिन ज्यादातर तूल वो मामले पकड़ते हैं जहां विवाद की जड़ में चीन या पाकिस्तान हैं.

बहरहाल, चीन हमारा पड़ोसी है और वह उत्तर में भारत के साथ एक भूमि सीमा साझा करता है. भारत-चीन के बीच की सीमा वास्तव में पूरी तरह से सीमांकित नहीं है और इस तरह से भारत चीन सीमा तीन तरह से विभाजित की गई है, पश्चिमी सेक्टर, मध्य जोन और पूर्वी क्षेत्र.

भारत चीन के बीच मुख्य सीमा विवाद पश्चिमी और पूर्वी क्षेत्रों में हैं. इसलिए चीन, लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के अधिकांश क्षेत्र पर दावा करता है. अक्साई-चीन पर 1962 से चीन का कब्जा है, जो कि भारत यानी हमारा हिस्सा है. भारत और चीन अपनी 3,500 किमी लंबी वास्तविक सीमा, जिसे वास्तविक नियंत्रण रेखा कहा जाता है, के साथ-साथ एक विशाल क्षेत्र पर अपना अपना दावा करते हैं.

हिमालयी क्षेत्र काफी हद तक दूरस्थ, ऊबड़-खाबड़ और बर्फ से ढका हुआ है, जिसमें दोनों पक्षों के सैनिक कई क्षेत्रों में एक-दूसरे से कुछ मीटर की दूरी पर हैं. ऐसा पहली बार नहीं हो रहा है जब पहली बार एलएसी के पास स्थित तवांग को लेकर चीन ने ये हिमाकत की हो, अवैध तरीके से अपनी सीमाओं का विस्तार करना चीन की इसके पड़ोसियों के खिलाफ कूटनीति का एक अहम हिस्सा रहा है. ऐसे में पीएलए को निर्देश मिले होंगे और वो हरकत में आ गए होंगे.

हालांकि इस हरकत का भारतीय सेना ने बेहद माकूल और करारा जवाब दिया है. सवाल ये है कि भारत की स्थलीय सीमाएं आज तक निश्चित क्यों नहीं हो सकीं. चाहें एलएसी हो या एलओसी, आज तक सीमा का आधिकारिक निर्धारण नहीं हो सका हैं. ऐसे में अगर पड़ोसी किसी तरह का दुस्साहस कर रहा है तब इसका समाधान कैसे निकाला जा सकता है.

सीमा के मुद्दे की पृष्ठभूमि और जटिलताएं इतिहास में गहराई तक जाती हैं, यह जांच करने की जड़ तक जाती है कि धारणाओं को कैसे आकार दिया गया होगा. चीन के साथ भारत की सीमा का इतिहास मुख्य रूप से रूस को दूर रखने के ब्रिटिश साम्राज्य के रणनीतिक विचार से प्रेरित है. शायद यही वजह है कि आज तक भारतीय सीमाओं की पहचान ब्रिटिशर्स द्वारा निर्धारित किए गए मानदंडों के आधार पर तय की जाती है.

वहीं इस विवाद को सबसे बड़ी और एक वजह अपरिभाषित, 3,440 किमी लंबी विवादित सीमा है. सीमांत के साथ नदियां, झीलें और बर्फ से आच्छादित होने का मतलब है कि रेखा बदल सकती है और ऐसे में कई बिंदुओं पर सैनिकों को आमने-सामने ला सकती है, जिससे टकराव हो सकता है.

वहीं दोनों देशों के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा पर बुनियादी ढांचे के निर्माण को लेकर होड़ लगी हुई हैं. भारत द्वारा उच्च ऊंचाई वाले हवाई ठिकाने के लिए एक नई सड़क के निर्माण को चीनी सैनिकों के साथ 2020 में घातक संघर्ष के लिए एक बड़े कारण के तौर पर देखा गया था.

अब हालात ये है कि कई दफा कोर कमांडर लेवल की बैठक के बावजूद भी इस मसले का कोई हल नहीं निकल सका और सीमा पर स्थिति अत्यंत तनावपूर्ण है. इस दिशा में अगर सीमा विवाद सुलझाने के दोनों देशों के लिए विकल्पों की बात करें तो इसके कई आयाम हैं.

दरअसल, कुछ बाहरी मामलों से भी दोनों देशों के बीच तनाव बढ़ा है. चीन और अमेरिका के बीच पिछले 2 सालों में जारी ट्रेड वॉर, हांगकांग में विद्रोही गतिविधियां और दुनिया में नंबर 1 बनने की देशों की ललक ऐसे विवादों की जड़ हैं. इस बीच कोरोना वायरस महामारी को भी चीन द्वारा छेड़े गए ऑर्गेनिक वॉर के तौर पर दुनिया ने देखा.

इस वजह से दुनिया में चीन के खिलाफ एक कोल्ड वॉर जैसे हालात बन चुके थे. बहरहाल, अब जबकि भारत चीन के बीच सीमा विवाद चरम पर है ऐसे में जरूरी है कि दोनों देशों के बीच राजनयिक और राजनैतिक स्तर पर एक मजबूत और सकारात्मक निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए पहल हो.

इसके अलावा सीमा के स्थाई निर्धारण को लेकर भी दोनों देशों को एक दूसरे की अखंडता और संप्रभुता का ध्यान रखते हुए एक कॉमन अंडरस्टैंडिंग बनानी होगी. वहीं सीमा विवाद के मद्देनजर दोनों देशों द्वारा उठाए गए कदमों को पीछे लेने की जरूरत है.

साथ ही पारस्परिक रूप से लाभकारी सहयोग को ध्यान में रखते हुए दोनों देशों को अंतराष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर आपसी समन्वय को बढ़ाने पर बल देना होगा. वहीं समाधान की दिशा में यह एक मील का पत्थर साबित होगा अगर दोनों देशों के बीच सीमाओं को सुपरिभाषित और सीमांकित किया जाए. सीमा के स्थाई निर्धारण से ही विवाद का स्थाई समाधान संभव हो सकेगा.

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