भारत के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में दोषी एजी पेरारिवलन को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है सुप्रीम कोर्ट ने एजी पेरारीवलन की रिहाई का आदेश जारी किया। सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत मिली विशेष शक्ति का इस्तेमाल करते हुए पेरारिवलन को रिहा करने का आदेश दिया। पेरारिवलन पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के मामले में 30 साल से ज़्यादा की सज़ा काट चुका है।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एल नागेश्वर राव की पीठ पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी पेरारीविलन की रिहाई के आदेश सुनाते हुए कहा कि संविधान की अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को किसी कैदी की सज़ा माफ करने के अधिकार है, लेकिन इसको लटकाया नहीं जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अनुच्छेद 161 में यह नहीं कहा गया है कि राज्यपाल रिहाई की फाइल राष्ट्रपति के पास भेजेंगे। पेरारिवलन रिहाई के मामले में राज्यपाल ने अनुच्छेद 161 के तहत फैसला लेने में काफी देर किया है इसलिए सुप्रीम कोर्ट पेरारिवलन को रिहा कर रहा है।
मामले की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार के लिए पेश एडिशनल सॉलिसिटर जनरल के एम नटराज ने पेरारिवलन की याचिका का विरोध करते हुए कहा था कि पेरारिवलन को 1999 में फांसी की सज़ा मिली थी। 2014 में उसको उम्र कैद में बदल दिया था तब इस बाद आधार बनाया गया था कि राष्ट्पति उनकी दया याचिका पर फैसला लेने में समय लगा रहे हैं। अब उसकी सजा पर केंद्र सरकार को फैसला लेने दिया जाए।
पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या के दोषी एजी पेरारिवलन ने सुप्रीम कोर्ट में तमिलनाडु सरकार के आदेश को आधार बनाते हुए अर्ज़ी दाखिल किया था। पेरारिवलन ने याचिका में कहा था कि तमिलनाडु सरकार के आदेश को राज्यपाल और केंद्र सरकार ने लटका रखा है। राजीव गांधी हत्याकांड के वक्त पेरारिवलन की उम्र सिर्फ 19 साल थी। 1998 में टाडा अदालत ने उसे मौत की सजा सुनाई थी।1999 में सुप्रीम कोर्ट ने सजा को बरकरार रखा था। फिर 2014 में मौत की सजा को अदालत ने उम्र कैद में बदल दिया था। इस साल मार्च में उच्चतम न्यायालय ने उसे जमानत दी थी, मगर जेल से उसकी रिहाई नहीं हो सकी थी। 21 मई 1991 को पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तमिलनाडु के श्रीपेरंबुदूर में हत्या हुई थी और 11 जून 1991 को पेरारिवलन को गिरफ्तार किया गया था। हत्याकांड में बम धमाके के लिए उपयोग में आई दो 9 वोल्ट की बैटरी खरीद कर मास्टरमाइंड शिवरासन को देने का दोष पेरारिवलन पर सिद्ध हुआ था। पेरारिवलन घटना के समय 19 साल का था और वह पिछले 31 सालों से सलाखों के पीछे है।