विवादित जमीन पर बन रहा मेरठ नगर निगम का 50 करोड़ कीमत का नया कार्यालय, पूरा विवाद जानिये

70 सालों से विवादित 300 करोड़ की जमीन को लेकर मेरठ नगर निगम और आवास विकास परिषद् आमने-सामने है. मेरठ की नई सड़क पर डंपिंग ग्राउंड बनी इस जमीन पर नगर निगम ने नये कार्यालय के लिए पिछले दिनों शिलान्यास किया और अब निर्माण शुरू करा दिया. आवास विकास परिषद ने शनिवार को पुलिस के साथ पहुंचकर निर्माण रोक दिया है. दिलचस्प बात यह है कि शासन से मंजूर 50 करोड़ के इस प्रोजेक्ट के लिए सरकार ने सवा 11 करोड़ रूपये भी जारी कर दिये है.

एक ग्राफिक्स फाइल के जरिये मेरठ नगर निगम के अफसरों ने नये नगर निगम की बिल्डिंग की आलीशान तस्वीरें सजाकर शासन को भेजी और उस कागजी तस्वीर को जमीन पर उतारने का ख्वाब मेरठ नगर निगम के अफसरों ने राज्य सरकार को दिखाया। इन्हीं काल्पनिक तस्वीरों के जरिये अफसरों ने 50 करोड़ के बजट की मंजूरी ले ली और तस्वीरों को जमीन पर उतारने के लिए मेरठ के शास्त्रीनगर की विवादित जमीन चुनी।

नगर निगम को शासन से सवा 11 करोड़ रूपये की पहली किस्त मिली और बीते नवरात्र के पहले दिन शहर के सांसद, विधायकों और राज्य सरकार के मंत्री को बुलाकर प्रस्तावित इमारत का शिलान्यास करा दिया गया। लंबी शान-शौकत और तामझाम के साथ प्रस्तावित इमारत के लिए जमीन खोदने का काम शुरू हो गया। 26490 वर्ग मीटर एरिया में फैली इस जमीन की कीमत सर्कित रेट के हिसाब से करीब 250 करोड़ और बाजारी मूल्य करीब 300 करोड़ है।

लेकिन नगर निगम के अफसरों ने शासन से एक बात छुपाई। वह ये कि इस जमीन का मालिकाना हक उसके पास नही है। इस जमीन पर निर्माण होने की जानकारी जब आवास विकास परिषद् को हुई तो शनिवार को विभागीय अफसर पुलिस लेकर काम रूकवाने पहुंच गये। विवाद मालिकाना हक से जुड़ा है। कागजों में इस जमीन का मालिकाना हक ना तो नगर निगम के पास है और ना आवास विकास के पास। असली वारिस आज भी मुआवजे के लिए हाईकोर्ट तक लड़ रहे है। हैरत की बात है कि जिस जमीन का मालिकाना हक नगर निगम के पास नही है, उस पर नगर निगम के अफसरों ने 50 करोड़ रूपये की लागत का निर्माण शुरू करा दिया गया।

इस मामले को हाईकोर्ट में चुनौती देने वाले आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना कहते है कि नगर निगम ने शासन को गुमराह करके प्रोजेक्ट मंजूर कराया है। इस भूमि का स्वामित्व दोनों में से किसी विभाग के पास नही है। इस भूमि का आज तक अवार्ड भी नही हुआ है। और इसीलिए इस अवार्ड की कापी नगर निगम के पास नही है। जिन अफसरों को सरकार जिम्मेदार मानती है, उन्होने सरकार को छलने का काम किया है। हमें हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका करने के लिए आदेश दिया है।

शनिवार को आवास विकास और नगर निगम के बड़े अफसरों के बीच पब्लिक औऱ पुलिस की मौजूदगी में जमकर बहस हुई। आवास विकास का दावा है कि अभी तक टाइटल किसी को नही मिला है तो हाईकोर्ट के आदेश की धज्जियां उड़ाकर नगर निगम कैसे यह निर्माण कर रहा है। नगर निगम के अफसर शरद पाल आवास विकास अफसरों के सामने एक वीडियो में गुहार करते हुए दिख रहे है। वह कह रहे है कि हाईकोर्ट के आदेश पर शासन को इस मामले में स्वामित्व निर्धारित करना है। आप काम चलने दीजिए। सरकार जिसे चाहेगी उसे भूमि दे देगी।

आवास विकास ने इस संबध में भूमि शिलान्यास के बाद नगर निगम को नोटिस भेजकर चेताया था। आवास विकास ने साफ लिखा है कि जब तक भूमि का स्वामित्व निर्धारण नही होता, भूमि पर निर्माण कार्य नही किया जाना चाहिए।

इस विवादित जमीन का इतिहास देखें तो…


1951 में नगर निगम ने इस जमीन के अधिगृहण की अधिसूचना जारी की. अधिगृहण प्रक्रिया या मुआवजा देने का कोई अभिलेख नगर निगम के पास नही है.

26 साल बाद 1977 में आवास विकास ने शास्त्रीनगर योजना के लिए इस जमीन का पुर्नगृहण कर लिया. इस दौरान नगर निगम ने कचरा डालकर इस जमीन पर कब्जा कर लिया.

27 दिसंबर 2017 को हाईकोर्ट ने इस मामले को शासन में भेजा और कहा कि सरकार खुद यह तय करे कि मालिक कौन है. लेकिन इस पर कोई आदेश शासन से अब तक नही आया है.

72 साल बाद नगर निगम ने नये कार्यालय का प्रोजेक्ट शासन से पास कराकर नवरात्र में शिलान्यास करा दिया. 16 अक्टूबर को आवास विकास ने नगर निगम को काम रोकने के लिए चेताया और जब बात नही बनी तो अफसर शनिवार को पुलिस लेकर पहुंच गये.

केवल स्वामित्व ही नही, इस प्रोजेक्ट के शुभारंभ से पहले नगर निगम के बेसब्र अफसरों ने किसी भी नियम का पालन नही किया. शासन के पैसे से जिस प्रोजेक्ट का निर्माण हो रहा है…

लैंडयूज बदलवाये बिना नगर निगम ने निर्माण शुरू कर दिया.
इस निर्माण का मानचित्र ना तो आवास विकास से एप्रूव्ड है और ना मेरठ विकास प्राधिकरण से
नगर निगम के पास जमीन के स्वामित्व का कोई अभिलेख नही है तो शासन से बजट कैसे मंजूर हुआ

मेरठ नगर निगम की सहायक नगर आयुक्त ममता मालवीय ने भारत समाचार को सफाई देते हुए कहती है कि कुछ गलतफहमियां थी जिनकी वजह से आवास विकास के अफसर मौके पर पुलिस लेकर पहुंचे थे। मगर अब सब ठीक है। मौके पर कार्य शुरू करा दिया गया है। क्या भूमि का स्वामित्व नगर निगम के पास है..यह पूछे जाने पर ममता मालवीय अति आत्मविश्वास के साथ हामी भरकर कहती है कि हमारे पास सारे अभिलेख है।

ममता मालवीय से जब भूमि के अवार्ड और स्वामित्व संबधी अभिलेखों की उपलब्धता के लिए एक आरटीआई के संदर्भ में जानकारी चाही गयी और यह बताया गया कि आरटीआई के जबाब में नगर निगम ने कोई भी अभिलेख मौजूद होने से इंकार किया. उन्होने कहा कि इस बारे में मुझे जानकारी नही। मेरे घर में फैमिली फंक्शन है। मैं बिजी हूं। बाद में बात करूंगी।

एनजीटी और सुप्रीमकोर्ट की एयर पॉलुशन कंट्रोल कमेटी का आदेश नगर निगम के ठेंगे पर-

ममता मालवीय ने स्वीकार किया कि मौके पर काम जारी है। भारत समाचार की पड़ताल में यह सच भी पाया गया। शनिवार रात करीब 8 बजे साइट पर 3 जेसीबी मशीनें और एक पॉकलैन से जमीन की खुदाई और मिट्टी शिफ्ट किये जाने का काम जारी था। नगर निगम इतने बड़े निर्माण को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की योजना ग्रैप-3 लागू होने के बाद भी जारी रखे हुए है। इन दिनों दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में बेतहाशा प्रदूषण के चलते आबोहला बेहद खराब है। अति गंभीर स्थिति में पहुंचे हालात के बीच नगर निगम बिना किसी पुख्ता इंतजामों के निर्माण को जारी रखे हुए है। ग्रैप-3 लागू होने के बाद हर तरह के निर्माण कार्य रोक दिये जाते है।

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