Special Story : प्रकृति पूजा और सकारात्मकता का प्रतीक है छठ महापर्व, जानिए, छठ पूजा का वैज्ञानिक महत्व…

यह महापर्व सनातन की "सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया…" के मूल-मंत्र को मूर्त रूप देने वाला एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय की कामना निहित है. इस भौतिक या नश्वर संसार में जीवों में ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है.

छठ महापर्व मात्र एक त्यौहार भर नहीं है. यह अध्यात्म और भौतिकता का वो अनूठा संगम है जिसने सदियों से सनातन संस्कृति की मानव और प्रकृति उत्थान की बुनियादी सोच को अभिसिंचित किया है. छठ पूजा वो भावना है, जो हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का एक अवसर देती है. प्रकृति और जीवन एक दूसरे के पूरक हैं. बिना प्रकृति जीवन की कोई कल्पना नहीं है.

प्रकृति और जीवन के इसी जुड़ाव को बरकरार रखने वाले कारकों के प्रति हमारे अनुग्रह की भावना है छठ. यह एक मात्र ऐसा त्यौहार है जिसमें धरा की संरक्षण में पल रहे जीव जंतुओं तक को उनके प्रति मानवीय संवेदना के भाव को व्यक्त करने का माध्यम बनता है. छठ के परंपरागत गीतों में “केरवा जे फरेला घवध से ओहपर सुग्गा मेड़राय, सुगवा जे मरवो धनुख से सुग्गा जइहें मुरझाए.., सुगनी जे रोवेली वियोग से, आदित्य होई ना सहाय.., जैसे गीत इस बात को दर्शातें हैं कि सनातन पशु-पक्षियों के संरक्षण की याचना कर उनके सह-अस्तित्व की कामना करता है. और शायद यही वजह है कि छठ को लोक आस्था का ‘महापर्व’ कहा जाता है.

यह महापर्व सनातन की “सर्वे भवन्तु सुखिन:, सर्वे संतु निरामया…” के मूल-मंत्र को मूर्त रूप देने वाला एक ऐसा अनुष्ठान है जिसमें सर्वजन हिताय- सर्वजन सुखाय की कामना निहित है. इस भौतिक या नश्वर संसार में जीवों में ऊर्जा का मुख्य स्रोत सूर्य है. छठ महापर्व एक मात्र ऐसा पर्व है जिसमें सूर्य के उदीयमान होने से लेकर उसके अस्ताचलगामी होने तक के स्वरूप का पूजन किया जाता है. यह सनातन संस्कृति की उदारता और प्रकृति के प्रति उसकी कृतज्ञता के चरम भाव का द्योतक है.

यह सिद्ध करता है कि हर परिस्थिति में हम समभाव और एक सकारात्मक दृष्टिकोण रखने वाले लोग है. हमारे लिए जीवन या प्रकाश एक नए उल्लास और उमंग का प्रतीक है तो मृत्यु या तिमिर हमें एक प्रेरणा देता है कि पुराने का अवसान ही नवीन का विहान है. इसके पीछे ये संदेश निहित है कि उठो! जागो! चलो और अपने आप को पहचानो. कुछ नास्तिक वर्ग के लिए यह पर्व जितना सनातन के धार्मिक पहलू का हिस्सा है उतना ही विराट और विस्तृत इसका वैज्ञानिक पक्ष भी है. छठ महापर्व स्वास्थ्य और ऊर्जा का अनमोल भंडार है.

सूर्य शक्ति और ऊर्जा का प्रतीक है. सूर्य की किरणों में स्नान का अपना अलग ही वैज्ञानिक महत्व है. सूर्य की किरणें विटामिन डी का प्रचुर खजाना हैं. सूर्य स्नान न करने से मधुमेह, घुटने, गर्दन, कमर एवं हडि्‌डयों में दर्द, आस्टियोपोरोसिस, आस्टियोआर्थराइटिस, कैंसर, प्रोस्टेट कैंसर, ओवरी तथा गर्भाशय का कैंसर, ब्रेस्ट कैंसर जैसी 100 तरह की खतरनाक बीमारियां होती हैं और अगर इनसे बचाव का कोई उपाय है तो हमें सूर्योपासना करना ही होगा.

हमें जल में खड़े होकर उगते और डूबते हुए सूर्य को अर्घ्य देना ही होगा. छठ महापर्व को रूढ़ीवादी बताने वाला रवैया छोड़ना ही पड़ेगा, क्योंकि पर्यावरण संतुलन से लेकर पशु पक्षियों के विलुप्त होने की समस्या और ग्लोबल वार्मिंग जैसी गंभीर वैश्विक समस्याओं का निदान हमारे संस्कारों, परंपराओं और सनातन की शक्ति में ही निहित है.

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