फर्रुखाबाद : लोकसभा में NDA और INDI के बीच मुकाबला…जानिए समीकरण

एक तरफ भाजपा फिर से बहुमत के साथ सत्ता में आने का दवा कर रही है।दूसरी तरफ महागठबंधन की कवायद भी दिख रही है

फर्रुखाबाद लोकसभा सीट पर मुख्य मुकाबला एनडीए और इंडी गठबंधन के बीच है. उत्तर प्रदेश में सपा-कांग्रेस का गठबंधन हुआ है. फर्रुखाबाद सीट सपा की झोली में आई है. समाजवादी पार्टी इस सीट पर अपना उम्मीदवार का ऐलान कर चुकी है. डॉ. नवल किशोर शाक्य इस सीट पर उम्मीदवार हैं. वहीं जिले से बीजेपी ने दो बार सांसद रहे मुकेश राजपूत पर फिर से भरोसा जताया है. जबकि बसपा ने व्यापारी नेता क्रांति पांडे को टिकट देकर चुनाव को रोचक बना दिया है. लोधी और शाक्य मतदाताओं की संख्या सर्बाधिक होने के चलते बीजेपी और समाजबादी पार्टी के बीच कांटे की टक्कर मानी जा रही है.

प्राचीन काल में फर्रुखाबाद कांपिल्य राज्य में था जो महाभारत काल में राजा द्रुपद की राजधानी हुआ करती थी. मौजूदा समय में कंपिल फर्रुखाबाद का एक कस्बा है. फर्रुखाबाद की स्थापना नवाब मोहम्मद खां बंगश ने की थी, जिसने इसे 1714 में शासक सम्राट फरुखशियर के नाम पर रखा था. फर्रुखाबाद लोकसभा चुनाव 2024 बहुत ही नजदीक है. नरेंद्र मोदी की अगुवाई में बीजेपी लगतार तीसरी बार सत्ता पर काबिज होने के लिए पूरा जोर लगा रही है. वहीं विपक्षी दल भी उलटफेर करने की रणनीति बनाने में जुटे हुए हैं. चुनाव से पहले यूपी की फर्रुखाबाद सीट पर क्या है समीकरण, आइए जानते हैं.

फर्रुखाबाद वह जिला है, जहां राजनैतिक इतिहास काफी पुराना है. यहां से कई बड़े सियासी नाम जुड़े हैं. राम मनोहर लोहिया से लेकर सलमान खुर्शीद तक कई ऐसे नाम है, जिनका ताल्लुक फर्रुखाबाद से है. जिले का अधिकांश क्षेत्र ग्रामीण है और कृषि आधारित है. जिले में कोई बड़ा उद्योग धंधा भी नहीं है. समाजवादी के नायक रहे राम मनोहर लोहिया की कर्मस्थली है यह भूमि. वहीं पूर्व राष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन की जन्मस्थली भी है. कांग्रेस के वरिष्ट नेता सलमान खुर्शीद यहीं से आते हैं. मशहूर कवियत्री महादेवी वर्मा की जन्मस्थली भी फर्रुखाबाद है.

यहां से आलू बड़े-बड़े मंदिरों से लेकर विदेश तक भेजा जाता है. व्यवसाय के रूप में जनपद में कपड़ों पर प्रिंटिंग कार्य भी मशहूर है. यहां के कपड़े देश-विदेश तक भेजे जाते हैं. जिले में कपड़ों की एक विशेष प्रकार की कढ़ाई जरदोजी का कार्य भी पड़े पैमाने पर किया जाता है. यहां की बनी लहंगा-साड़ी की भी बेहद मांग है. जरदोजी का कार्य अधिकांश अल्पसंख्यक समाज के हाथों में है. 1952 के पहले आम चुनाव में कांग्रेस के टिकट पर पंडित मूलचंद दुबे चुनाव जीते थे. इस लोकसभा सीट पर वह लगातार तीन बार सांसद चुने गए कांग्रेस के सांसद पंडित मूलचंद दुबे की मौत के बाद 1963 के उपचुनाव में डॉक्टर राम मनोहर लोहिया मैदान में उतरे थे. 1962 में चीन से मिली हार के बाद देश में कांग्रेस के खिलाफ आक्रोश का माहौल था. 1963 में उपचुनाव में लोहिया को जीत मिली. फर्रुखाबाद लोकसभा में पांच विधानसभा हैं. फर्रुखाबाद सदर, भोजपुरी, अमृतपुर, कायमगंज तो वहीं एक एटा की अलीगंज विधानसभा है. इस लोकसभा में 17 लाख से अधिक मतदाता थे. पिछले तीन लोकसभा चुनाव की बात करें तो वर्ष 2019 में भाजपा से सांसद मुकेश राजपूत चुने गए थे. 2014 के चुनाव में भी जनता ने भाजपा प्रत्याशी मुकेश राजपूत पर ही विश्वास कर उनको जीत दर्ज कराई थी. जबकि 2009 में चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी सलमान खुर्शीद ने विजय हासिल कर केंद्रीय मंत्री का पद पाया था. 2024 की लोकसभा चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक पार्टियों तैयारी में जुटी हैं.

एक तरफ भाजपा फिर से बहुमत के साथ सत्ता में आने का दवा कर रही है. वहीं दूसरी तरफ महागठबंधन की कवायद भी दिख रही है. इस सबके बीच फर्रुखाबाद लोकसभा के चुनावी समीकरण पर चुनावी समीकरण में जाति समीकरण अधिक प्रभावी दिखाई दे रहे हैं. लोकसभा में पिछड़ी जाति के मतदाताओं की संख्या अधिक है. सर्वाधिक संख्या लोधी राजपूत 2,75,200 और शाक्य मतदाताओं की 1,38,600 संख्या है. वहीं यादव मतदाता की संख्या 2,18,480 हैं. सवर्ण मतदाताओं में ठाकुर 1,84,270 और ब्राह्मण मतदाताओं की संख्या 1,50,260 है. वहीं अल्पसंख्यक मतदाता भी यहां पर निर्णायक भूमिका में आते है जिनकी संख्या 1,74,000 है.अनुसूचित जाति के मतदाताओं में सर्वाधिक संख्या 98,250 जाटव मतदाताओं की हैं.

लेखक – मुनीष त्रिपाठी,पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार

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