Kushinagar: माँ तो आखिर माँ होती है…मेरी या तेरी या फिर किसी और की…कैसे माँ से भिन्न भला माँ हो सकती है..सोलह आने सच है – माँ तो आखिर माँ होती है… वैसे मां शब्द तो छोटा है पर संसार इस एक शब्द पर टिका है. मां की शख्सियत किताबी दायरों से बड़ी है।
माँ का कर्ज कोई नहीं उतार सकता
कुछ चंद शब्द इनकी ममता को बयां नहीं कर सकते पर इनकी ममता की मिसाल युगों-युगों तक समाज पर अपना असर डालती है, इनका कर्ज कोई नहीं उतार सकता है, लेकिन कई ऐसे भी बच्चे हैं, जो बूढ़े होते ही अपनी मां को वृद्ध आश्रम में छोड़कर अपनी जिम्मेदारी से मुक्ति पा लेते हैं. मां फिर भी अपने बच्चों की सलामती की दुआ करती हैं. यूं ही नहीं इन्हें धरती का भगवान कहा गया है.
वृद्ध आश्रम की महिलाओं ने रखा जितिया व्रत
भावुक और सोचने पर मजबूर करने वाली यह कहानी यूपी के कुशीनगर की हैं.. यहां कसया विकास खंड के वृद्ध आश्रम में रहने वाली कुछ महिलाएं, अपने बेटों के लिए निर्जला व्रत रखती हैं. बेटे ने बेशक उन्हें घर से बाहर निकाला, लेकिन उन्होंने उसी की सुख-समृद्धि की कामना के लिए जितिया व्रत रखा है.
पूत कपूत माता कूमाता नहीं
इनमें चार महिलाएं पिछले आठ साल से यहां रह रही हैं और हर साल व्रत रखती हैं. जिनका नाम गुलायची देवी, विद्यावती, प्रभावती, और दुर्गावती हैं. दो महिलाएं एक साल से व्रत रख रही हैं. इनमें फूला और प्रमीला हैं. वही शकुंतला नाम की महिला छह महीने से यहां रह रही है. ये महिलाएं बेटों की सलामती की दुआ करती हैं और कहती हैं कि किसी की बुराई के लिए अपनी अच्छाई को नहीं छोड़ा जा सकता. ये महिलाएं कहती हैं कि मां की ममता बेटों के लिए ही होती है. पूत कपूत हो सकता है.. लेकिन माता कूमाता कभी नहीं हो सकती हैं..