आलोचनाओं के दबाव में भी अडिग रहे मुलायम, कुछ ऐसी थी समाजवाद के चमकते सितारे ‘नेता जी’ की सख्सियत…

खांटी समाजवादवादी विचारधारा से हटकर जब जरुरत पड़ी तो मुलायम ने उघोगपतियों और फिल्मी सितारो को भी साथ लिया. साथ के लोगों ने आलोचना की. मीडिया से हमले शुरु हुए कि मुलायम की समाजवादी विचारधारा पर पूंजीवाद और परिवारवाद हावी हो रहा है लेकिन मुलायम टस से मस नही हुए.

नाम मुलायम सिंह यादव लेकिन असल जीवन मे इसके उलट, जीवन मे संघर्षो की पथरीली राह पर चलते हुये मुलायम लोहा हो चुके थे. फिर दांव चाहे पहलवानी का हो या पालिटिक्स का, मुलायम एक ही दांव मे सबको चित्त करने की ताकत रखते थे.

समाजवादी पार्टी मे एक नारा बड़ा मशहूर है मन से है मुलायम इरादे लोहा है. लेकिन मुलायम सिर्फ नाम से ही मुलायम थे असल जिंदगी मे वो अपने फैसलो के प्रति बेहद सख्त रहे है. भले ही उस फैसले को लोगो ने आत्मघाती माना हो, भले ही आलोचना की हो लेकिन वो अपने इरादो से पीछे नही हटे. पहलवानी से पालिटिक्स तक का सफर मुलायम ने अपने बूते तय किया.

किसी के कंधो पर सवार हो कर नही. तीन बार यूपी के सीएम, सात बार लोकसभा सांसद और एक बार रक्षा मत्री मुलायम के कद के नेता बहुत कम नजर आयेगे. मुलायम को नाम उनके परिवार से मिला लेकिन पहचान उन्होने खुद बनाई. पहलवानी मे हाथ आजमाया तो पूरे इटावा मे उनके चरखा दांव की चर्चा होती थी. पेशे से टीचर बने लेकिन अखाडे की मिट्टी ने मुलायम के शरीर को ही नही इरादो को भी लोहा कर दिया था. पहलवानी के अखाड़े से निकल कर मुलायम पालिटिक्स के अखाडे मे बड़ों-बड़ों को पटखनी देने लगे.

देखते ही देखते मुलायम यूपी की राजनीति का सबसे बडा चेहरा बन गये. मुलामय की एक और खासियत थी, वो ना तो कभी अपने फैसलो से पीछे हटे और न ही अपने बयानो से. बाबरी मस्जिद बचाने के लिये कारसेवको पर गोली चलाने के आत्मघाती फैसले का वो अंतिम समय तक समर्थन करते रहे. वो बार-बार कहते रहे कि उन्होने संविधान की रक्षा के लिये ये फैसला लिया था.

मुलायम जब समाजवादी पार्टी मे अमर सिंह को लाये तो उनके इस फैसले का भारी विरोध हुआ. वहीं जब बाहर किया तो लोगो ने कहा अब फंड कहा से आएगा. लेकिन अमर सिंह के बगैर उन्होंने यूपी मे सपा की सरकार बनाई. विरोधी खामोश हो गये. आजम खान गये, बेनी बाबू गये, मुलायम अपने दम पर लडते रहे और जब इन्हें वापस लाये तो भी डंके की चोट पर बगैर किसी से सलाह मश्विरा किये.

आजम और अमर सिंह के बुरे वक्त को देख एक दोस्त की तरह उनका साथ निभाया लेकिन राजनैतिक फायदे के लिये अपने फैसलो को पलटा नही. इसी तरह अखिलेश को सीएम की कुर्सी सौंपने का फैसला हो या फिर पार्टी मे टूट के बाद अखिलेश को समाजवादी पार्टी सौपने का फैसला हो. मुलायम ने एक बार जो फैसला ले लिया वो उससे पीछे नही हटे.

खांटी समाजवादवादी विचारधारा से हटकर जब जरुरत पड़ी तो उघोगपतियो और फिल्मी सितारो को भी साथ लिया. साथ के लोगों ने आलोचना की. मीडिया से हमले शुरु हुए कि मुलायम की समाजवादी विचारधारा पर पूंजीवाद और परिवारवाद हावी हो रहा है लेकिन मुलायम टस से मस नही हुए. राजनीति मे ऐसे लोग बहुत कम है जो अपने फैसलों पर कायम रहते हो. जो अपनी बातों पर अडिग रहते हो लेकिन ये मुलायम ही थे जो न तो अपने बयान बदलते थे और न ही फैसले, तभी तो लोग कहते है मन से है मुलायम इरादे लोहा है.

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