डॉलर के मुकाबले रुपया खस्ताहाल, पहली बार पहुंचा 81 के पार, अभी और गिरावट के आसार…

जुलाई-सितंबर की तिमाही में चीनी युआन और कोरियाई वोन में डॉलर के मुकाबले क्रमशः 10.43 प्रतिशत और 15.63 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है. डॉलर के मुकाबले रूपए की गिरावट का सबसे बड़ा कारण फरवरी के अंत में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध रहा है.

तमाम आर्थिक संस्थाओं और अर्थव्यवस्था का जानकारों की मानें तो भारतीय रुपया, डॉलर के मुकाबले 82 अंक तक गिर सकता है. इसके पीछे की वजह वैश्विक मंदी के अलावा व्यापक व्यापार घाटा, भारत-अमेरिका ब्याज दर के अंतर में कमी और कच्चे तेल की कीमतों में बढ़ोतरी रही है.

हालांकि, घटते विदेशी मुद्रा भंडार का सामना करते हुए, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारतीय रुपए को बचाने में एक सीमा से ज्यादा आक्रामक नहीं हो सकता. वरन् उभरते बाजार (EM) में उन मुद्राओं के साथ एक नियंत्रित रफ्तार पकड़ने की अनुमति दे सकता है जो डॉलर के मुकाबले अधिक गिर गए हैं.

ब्लूमबर्ग के आंकड़ों के मुताबिक, 23 सितंबर को रुपया इंट्राडे ट्रेड में 81.26 डॉलर प्रति डॉलर के एक और रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गया. डॉलर के मुकाबले रुपये की ऐसी गिरावट बेहद चिंता का विषय है. अभी पिछले सत्र में डॉलर की तुलना में रुपया 80.87 अंक नीचे था और भारतीय मुद्रा का ये प्रदर्शन पिछले सात महीनों में सबसे ज्यादा खराब रहा था.

जुलाई-सितंबर तिमाही में डॉलर की तुलना में रूपए में 2.4 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई थी. वहीं इस महीने अब तक रुपये में 1.8 फीसदी की गिरावट आई है. ब्लूमबर्ग के अनुसार, जनवरी के बाद से रुपया में 8.1 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. हालांकि रिपोर्ट्स की माने तो चीन के युआन और कोरियाई वोन जैसे दूसरे देशों की मुद्राओं की तुलना में रूपए का प्रदर्शन बेहतर रहा है.

जुलाई-सितंबर की तिमाही में चीनी युआन और कोरियाई वोन में डॉलर के मुकाबले क्रमशः 10.43 प्रतिशत और 15.63 प्रतिशत गिरावट दर्ज की गई है. डॉलर के मुकाबले रूपए की गिरावट का सबसे बड़ा कारण फरवरी के अंत में शुरू हुआ रूस-यूक्रेन युद्ध रहा है. इस युद्ध ने सीधे-सीधे सप्लाई चैन पर असर डाला और इस स्थिति ने वैश्विक देशों की अधिकांश बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में मुद्रास्फीति की चिंताओं को बढ़ा दिया.

बहरहाल, मुद्रास्फीति के इसी दबाव को कम करने के लिए केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरों में आक्रामक तरीके से बढ़ोतरी करना शुरू कर दिया है. आर्थिक विश्लेषकों का ये भी मानना है कि यह वैश्विक विकास को धीमा कर सकता है और मंदी को जन्म दे सकता है.

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