पत्रकारिता के नाम पर गुमराह किए जा रहे छात्र, केन्द्रीय विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नियुक्ति को लेकर लगा रहे गंभीर आरोप!

विभाग के पूर्व विद्यार्थियों का आरोप है कि फर्जीवाड़े का सरगना डॉ. अंजनी झा नाम का अध्यापक ही है जो खुद भी फर्जी पीएचडी डिग्री के आधार पर केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत है। उनकी पीएचडी के गाइड ना तो प्रोफेसर रहें, ना खुद पीएचडी है फिर भी डॉ. झा को पीएचडी करवा दिया। डॉ. झा की पीएचडी के बाद 8 साल पूरा हुए वगैर नियुक्ति भी हो गई।

मोतिहारी. मीडिया अध्ययन विभाग, महात्मा गांधी केन्द्रीय विश्वविद्यालय अपने विद्यार्थियों को पत्रकारिता के बदले फर्जीवाड़े की ट्रेनिंग दे रहा है। हालिया मामला विभाग के दो विद्यार्थियों के हिंदुस्तान पटना में चयन का है। एक विद्यार्थी को स्ट्रिंगर के रूप में ट्रेनिंग के लिए बुलाया गया, जिसका चयन रिपोर्टर के रूप में चयनित होने की खबर, अलग-अलग अखबारों में केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति की फोटो के साथ आधिकारिक रूप से विश्वविद्यालय द्वारा भेजा और प्रकाशित कराया गया।

वहीं किसी दूसरे विद्यार्थी को डेस्क पर ट्रेनी के रूप में बुलाया गया और उसकी खबर भी कहीं रिपोर्टर तो कहीं डेस्क एडिटर बनने की घोषणा के साथ आधिकारिक रूप से प्रकाशित कराई गई। कुछ शिक्षकों द्वारा अपने स्टेटस पर डेस्क एडिटर पर चयन का दावा किया गया।

पूर्व विद्यार्थियों ने नाम नहीं छापने की शर्त पर बताया कि विभाग के पास एक कंप्यूटर तक विद्यार्थियों को सिखाने के लिए उपलब्ध नहीं है। लैब, स्टूडियो, क्वॉर्क, इन-डिजाइन, कैमरा की तो चर्चा भी नहीं होती। विद्यार्थी ने डॉ. झा नाम के प्रोफेसर की योग्यता पर सवाल उठाते हुए कहा कि उन्हें खुद इंग्लिश से हिंदी का अनुवाद करना तो दूर लिखना तक नहीं आता और ना ही उनको ठीक से मोबाइल और कंप्यूटर चलाना आता है।

विद्यार्थी ने नाम ना बताने की शर्त पर आगे कहा कि उनकी सारी पुस्तकें चुराई हुई है जिसकी जांच केंद्रीय विश्वविद्यालय को कमेटी बनाकर करनी चाहिए। इससे पहले भी डॉ. झा के इसी फर्जीवाड़े के कारण एक बहुचर्चित समाचार समूह ने उनको ब्लैक लिस्ट कर रखा है लेकिन विश्वविद्यालय ने उनके प्रमाण पत्रों की जांच के बिना ही उन्हें नियुक्ति दे दी है।

विभाग के पूर्व विद्यार्थियों का आरोप है कि फर्जीवाड़े का सरगना डॉ. अंजनी झा नाम का अध्यापक ही है जो खुद भी फर्जी पीएचडी डिग्री के आधार पर केंद्रीय विश्वविद्यालय में कार्यरत है। उनकी पीएचडी के गाइड ना तो प्रोफेसर रहें, ना खुद पीएचडी है फिर भी डॉ. झा को पीएचडी करवा दिया। डॉ. झा की पीएचडी के बाद 8 साल पूरा हुए वगैर नियुक्ति भी हो गई।

गौरतलब है कि उनकी पीएचडी 20 अक्टूबर 2011 को हुई और केन्द्रीय विश्वविद्यालय का फॉर्म भरने की अंतिम तिथि ही 12 जुलाई 2019 थी। इस तिथि तक डॉ. झा के पास मात्र 7 वर्ष 8 माह का अनुभव था जबकि उनकी सर्विस में केवल 5 माह का गैप है। ऐसे में मात्र 7 साल 3 माह के अनुभव के आधार पर उनको एसोसिएट प्रोफेसर बनाया गया।

यूजीसी की नियमावली में इस पद के लिए 8 वर्ष का अनुभव होना चाहिए। इसके साथ ही डॉ. झा ने किसी दो कोठरी में चलने वाले संस्थानों जगत पाठक एवं एक अन्य संस्था का फर्जी अनुभव प्रमाण लगाया। वो संस्था माखनलाल पत्रकारिता विवि के स्टडी सेंटर है जहां प्रोफेसर पद पर नियुक्ति ही नहीं होती।

दोनों संस्था अतिथि व्याख्याता रखती है। इतने आरोपों के बावजूद भी केविवि के कानों पर जूं तक नहीं रेंगती और ऐसे फर्जी लोगों के मानदेय में विवि करोड़ों रुपए खर्च कर रही है। पूर्व विद्यार्थियों ने कुलपति से मौखिक रूप से इसकी रिटायर्ड जस्टिस से जांच कराने के मांग भी की परन्तु इसको अनसुना कर दिया गया।

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