तमिलनाडु के पूर्व DGP को 3 साल की जेल, महिला IPS ने लगाया था यौन शोषण का आरोप

मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 में इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया था. अदालत ने इस घटना को "हैरान करने वाला" और "राक्षसी" बताया था, जो तमिलनाडु पुलिस बल से संबंधित महिला अधिकारियों को प्रभावित करता था. अदालत ने भी इस घटना की कड़ी आलोचना की थी और कहा था कि यह एक असाधारण मामला था जिसकी जांच की निगरानी की आवश्यकता थी. अदालत के आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार ने अधिकारी को निलंबित कर दिया था.

तमिलनाडु के विल्लुपुरम में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कोर्ट ने डीजीपी रैंक के अधिकारी राजेश दास को यौन उत्पीड़न का दोषी ठहराया है. राज्य में विशेष डीजीपी रहे दास ने 2021 में ड्यूटी के दौरान एक महिला पुलिस अधीक्षक का यौन उत्पीड़न किया था. विल्लुपुरम मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पुष्परानी ने शुक्रवार को दास को तीन साल कैद और जुर्माने की सजा सुनाई. अदालत ने चेंगलपट्टू के तत्कालीन एसपी डी कन्नन पर 500 रुपये का जुर्माना भी लगाया, जिन्होंने महिला आईपीएस अधिकारी को शिकायत दर्ज कराने से रोकने की कोशिश की थी.

महिला अधिकारी ने पुलिस महानिदेशक, चेन्नई से शिकायत की थी, जिसमें आरोप लगाया गया था कि 21 फरवरी, 2021 को विशेष डीजीपी द्वारा उनकी आधिकारिक कार में उनका यौन उत्पीड़न किया गया था, जब वे 21 फरवरी, 2021 को आधिकारिक ड्यूटी पर उलुंदुरपेट जिले में जा रही थीं. इसके बाद, एक प्राथमिकी दर्ज की गई. CBCID द्वारा विशेष DGP और पुलिस अधीक्षक, चेंगलपेट के खिलाफ IPC की धारा 354A(2), 341, 506(1) और तमिलनाडु महिला उत्पीड़न निषेध अधिनियम, 1998 की धारा 4 के तहत अपराध दर्ज किया गया था.

महिला अधिकारी द्वारा दी गई यौन उत्पीड़न की शिकायत की जांच के लिए एक समिति का भी गठन किया गया था. उसने यह भी आरोप लगाया था कि विशेष डीजीपी और अन्य ने उसे शिकायत दर्ज करने से रोका था.

मद्रास उच्च न्यायालय ने 2021 में इस मुद्दे का स्वतः संज्ञान लिया था. अदालत ने इस घटना को “हैरान करने वाला” और “राक्षसी” बताया था, जो तमिलनाडु पुलिस बल से संबंधित महिला अधिकारियों को प्रभावित करता था. अदालत ने भी इस घटना की कड़ी आलोचना की थी और कहा था कि यह एक असाधारण मामला था जिसकी जांच की निगरानी की आवश्यकता थी. अदालत के आदेश के बाद तमिलनाडु सरकार ने अधिकारी को निलंबित कर दिया था.

उच्च न्यायालय जांच की निगरानी करना जारी रखे हुए था इसी बीच दास ने तमिलनाडु से बाहर मुकदमे को स्थानांतरित करने की मांग करते हुए सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया. उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ उच्च न्यायालय द्वारा पारित आदेशों की एक श्रृंखला ने निष्पक्ष सुनवाई के लिए उनके अवसरों पर प्रतिकूल प्रभाव डाला था और उच्च न्यायालय द्वारा पिछले सभी आदेशों को रद्द करने की भी मांग की थी.

उन्होंने यह भी तर्क दिया कि चूंकि उच्च न्यायालय ने बिना किसी स्थगन के समयबद्ध तरीके से मुकदमे को पूरा करने का आदेश दिया था, इसलिए जांच तंत्र पर कम से कम समय में चार्जशीट दाखिल करने का दबाव डाला गया था. सर्वोच्च न्यायालय ने, तब उच्च न्यायालय द्वारा जांच की निगरानी के लिए दर्ज स्वत: संज्ञान मामले को बंद कर दिया और आदेश दिया कि उच्च न्यायालय द्वारा पारित सभी पिछले आदेशों से किसी भी तरह से प्रभावित हुए बिना निचली अदालत इस मामले पर अपने गुण-दोष के आधार पर विचार करे.

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