जब मुलायम ने की थी महात्मा गांधी के निधन की पुष्टि, कड़कड़ाती ठंड में पैदल चलकर गांव वालों को दी थी जानकारी…

टूटी सड़कों पर कड़कड़ाती सर्दी में नंगे पांव चलते हुए, बैलगाड़ी पर यात्रा करते हुए और गन्ना चबाते हुए, जानकारी लेकर मुलायम सिंह यादव अपने गांव पहुंचे और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की खबर से लोगों को अवगत कराया. संघर्षों की आंधियां झेलते हुए बाद में यही 11 वर्षीय लड़का सुबाष चंद्र बोस के बाद 'नेता जी' के नाम से जाना गया और भारतीय राजनीति में समाजवाद की नई इबारत लिखी.

साल 1939 में पराधीन भारत के उत्तर प्रदेश राज्य के इटावा जिले में जन्में मुलायम सिंह यादव बचपन से ही बगावती प्रवृत्ति के थे. उन दिनों गरीबी-मुफिलिसी झेल रहे देश और उत्तर प्रदेश की बड़ी आबादी के बीच इटावा के सैफई में जन्में समाजवाद के प्रखर पुरोधा मुलायम सिंह यादव हमेशा ही तत्कालीन समाज में व्याप्त छुआछूत, भेद-भाव के प्रखर विरोधी रहे.

मुलायम सिंह यादव पांच भाई थे. मुलायम के पिता जी सुघर सिंह यादव एक साधारण किसान थे. गांव के अन्य लोगों की तरह ही उनकी भी इच्छा भी अपने बेटों के बहुत बड़े सपने संजोने की नहीं थी. उनकी भी इच्छा यही थी कि उनके पांचों बेटे खेती-बाड़ी पर ध्यान दें और पशुओं की सेवा करें. उनकी कोई राजनैतिक समझ या महत्वाकांक्षा नहीं थी.

लेकिन उनके दूसरे नंबर के पुत्र मुलायम सिंह यादव की बचपन से ही राजनीति में बड़ी रूचि थी. वो तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे बाल-विवाह, छुआ-छूत और दहेज प्रथा के खिलाफ अपनी आवाज समय-समय पर उठाते रहते थे. मुलायम का ये अंदाज कुछ लोगों को रास नहीं आता था तो अक्सर वो उनके पिता सुघर सिंह से अपने बेटे को समझाने की हिदायत देते रहते थे लेकिन मुलायम कहां रुकने वाले थे.

आजादी के पहले मुलायम के गांव में अक्सर शाम के समय चौपाल का आयोजन होता था जिसमें गांव-गरीब के किसान और आम लोग जुटते थे. चौपाल में ये लोग आस-पास के इलाकों में चल रहे स्वतन्त्रता आन्दोलनों पर चर्चा करते थे. इस बीच आजादी के बाद जब महात्मा गांधी की मृत्यु साल 1948 में हुई उस दौरान गांव में यह बात तेजी से फैली की एक ‘बड़े नेता’ का निधन हुआ है.

हालांकि लोगों को इस बात की पुख्ता जानकारी नहीं थी कि वास्तव में किस नेता का निधन हुआ तो ऐसे में इस बात की जानकारी करने की जिम्मेदारी नन्हें मुलायम के कंधों पर सौंपी गई. सुनीता एरोन अखिलेश की जीवनी पर आधारित अपनी किताब ‘विंड्स ऑफ़ चेंजेस’ में बतातीं हैं कि जनवरी 1948 में कड़कड़ाती सर्दी में मुलायम सिंह यादव को सैफई से 12 किमी दूर इटावा उस घटना के बारे में पता लगाने के लिए भेजा गया कि आखिर वो कौन सा नेता है जिसके निधन की खबर ने पूरे देश को झकझोर दिया है.

टूटी सड़कों पर कड़कड़ाती सर्दी में नंगे पांव चलते हुए, बैलगाड़ी पर यात्रा करते हुए और गन्ना चबाते हुए, जानकारी लेकर मुलायम सिंह यादव अपने गांव पहुंचे और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के निधन की खबर से लोगों को अवगत कराया. संघर्षों की आंधियां झेलते हुए बाद में यही 11 वर्षीय लड़का सुबाष चंद्र बोस के बाद ‘नेता जी’ के नाम से जाना गया और भारतीय राजनीति में नई इबारत लिखी.

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