कानून की प्रक्रिया दुरुपयोग के लिए शिकायतकर्ता पर एक्शन, रेरा ने लगाया रू. 5,000/- का जुर्माना

प्रोमोटर द्वारा इस आदेश के अनुपालन में आवंटी को विलम्ब के लिए ब्याज का भुगतान, लगभग रुपये 02.68 लाख, करते हुए सब-लीज़ डीड निष्पादित किया गया।

एक ओर जहाँ उ.प्र. रेरा आवंटियों द्वारा बड़ी संख्या में दायर शिकायतों के आधार पर उन्हें लगातार राहत प्रदान कर रहा है, वहीं कतिपय आवंटियों द्वारा उसी मामले में बार-बार शिकायतें दायर करके न्यायिक प्रक्रिया के दुरूपयोग के मामले भी प्रकाश में आ रहे हैं। एक ऐसा ही मामला जब अध्यक्ष उ.प्र. रेरा की एन.सी.आर. पीठ के समक्ष सुनवाई हेतु आया तो उन्होंने यह पाया कि आवंटी द्वारा प्रश्नगत शिकायत साफ मंशा से नहीं फाइल की गयी है, उसके द्वारा कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग किया जा रहा है और रेरा की पीठ का समय बर्बाद किया जा रहा है।
 
रेरा में इस आवंटी द्वारा पहली शिकायत विलम्ब के लिए ब्याज सहित कब्जा दिलाने के लिए दायर की गयी थी। रेरा की पीठ द्वारा उसकी शिकायत पर यह निर्णय किया गया कि सम्बन्धित प्रोमोटर द्वारा रजिस्टर्ड सब-लीज़ डीड निष्पादित करते हुए उसको कब्जा प्रदान कर दिया जाए और कब्जे में विलम्ब के लिए ब्याज का भी भुगतान किया जाए। प्रोमोटर द्वारा इस आदेश के अनुपालन में आवंटी को विलम्ब के लिए ब्याज का भुगतान, लगभग रुपये 02.68 लाख, करते हुए सब-लीज़ डीड निष्पादित कर दी गयी और इकाई का कब्जा हस्तगत कर दिया गया। आवंटी द्वारा इसी मामले में रेरा के एडज्यूडिकेटिंग ऑफिसर के न्यायालय में मुआवज़े के लिए शिकायत दायर की गयी जिसमें रू. 50,000/- मुआवजे़ के भुगतान का आदेश प्रदान किया गया। उसी आवंटी द्वारा रेरा में उसी मामले में फिर से कब्जे और विलम्ब के ब्याज के लिए शिकायत दायर कर दी गयी। रेरा की सम्बन्धित पीठ द्वारा यह शिकायत इस आधार पर निरस्त कर दी गयी कि आवंटी द्वारा इस मामले में दायर एक अन्य शिकायत में पूर्व में निर्णय दिया जा चुका है और आवंटी को सब-लीज़ डीड के साथ कब्जा प्राप्त हो चुका है।

इस आवंटी को उ.प्र. रेरा से नियमानुसार समस्त अनुतोष प्राप्त हो जाने के बाद भी उसे संतोष नहीं हुआ और उसके द्वारा रेरा में उसी मामले में चौथी शिकायत दायर करके ऐसे अनुतोष की मांग की गयी जिसके सम्बन्ध में रेरा के एडजुडिकेटिंग ऑफिसर द्वारा अपने आदेश में पहले ही निर्णय दिया जा चुका था। यही नहीं, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से सुनवाई के दौरान भी शिकायतकर्ता का आचरण अत्यधिक अनुचित पाया गया था। सर्वोच्च न्यायालय द्वारा भी ऐसे मामलों में निरन्तर यह निर्णय दिए गए हैं कि पक्षकारों के लिए न्यायालय के समक्ष साफ मंशा से आना आवश्यक है और किसी भी पक्षकार को कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने तथा न्यायालय का समय और ऊर्जा बर्बाद करने की छूट नहीं है।

अध्यक्ष उ.प्र. रेरा श्री संजय भूसरेड्डी का कहना है कि उ.प्र. रेरा देश की लगभग 40 प्रतिशत शिकायतों का बोझ अकेले सम्भाल रहा है और यदि कोई गैर जिम्मेदार आवंटी इस प्रकार से बार-बार रेरा की पीठों का समय बर्बाद करता है, तो उन आवंटियों को न्याय प्राप्त होने में विलम्ब होना स्वभाविक है जिनकी पीड़ा वास्तविक है। अतः इस मामले में कड़ा रूख अपनाते हुए सम्बन्धित आवंटी पर उसके अनुचित आचरण के लिए हर्जाना लगाने का निर्णय लिया गया।

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