संसद में 1991 Worship Act पर हुई चर्चा, अब इस कानून पर लगेगा बैन!

सोमवार यानी 5 फरवरी को इन सभी मामलों से जुड़े कानून 1991 Worship Act को लेकर संसद में जबरदस्त हंगामा देखने को मिला।

डिजिटल डेस्क: अयोध्या में राम मंदिर के बाद अब काशी और फिर मथुरा….. इस पूरे मामले पर देश के सियासत से लेकर जनता तक में उथल पुथल मचा हुआ है। अभी हाल ही में कोर्ट के आदेश के बाद ज्ञानवापी व्यास तहखाने में पूजा पाठ का कार्यकर्म शुरू हो चूका है। अब एक तरफ जहाँ हिन्दू पक्ष खुश है तो मुस्लिम पक्ष में रोष का माहौल नजर आ रहा है। इस बीच सोमवार यानी 5 फरवरी को इन सभी मामलों से जुड़े कानून 1991 Worship Act को लेकर संसद में जबरदस्त हंगामा देखने को मिला। आज संसद में BJP सांसद हरनाथ सिंह ने पूजा स्थल एक्ट 1991 को खत्म करने की मांग उठाई है। उन्होंने राज्यसभा में इस मुद्दे को उठाते हुए पूजा स्थल एक्ट को खत्म करने की मांग रखी।

पुरानी सरकारों ने राजनीतिक फायदे के लिए बदली हमारी संस्कृति – BJP सांसद हरनाथ सिंह

सांसद ने कहा कि ये कानून देश के संविधान का उल्लंघन करता है। उन्होंने याद दिलाया कि, “इस एक्ट के उल्लंघन में 1 से 3 साल तक की सज़ा का कानून है। ये न्यायिक समीक्षा पर रोक लगाता है, जिसके वजह से नागरिकों के अधिकारों में कमी आती है। स्वतंत्रता के बाद लंबे समय तक जो लोग सरकार में रहे वो हमारी धार्मिक स्थलों की मान्यताओं को नहीं समझ सके, राजनीतिक फायदे के लिए अपनी ही संस्कृति पर शर्मिंदगी की प्रवृत्ति स्थापित कर दी।”

समाज के लिए 2 तरह के कानून गलत: BJP सांसद हरनाथ सिंह

अपनी बात आगे बढ़ाते हुए हरनाथ सिंह ने कहा, “इस कानून का सीधा अर्थ है कि विदेशी आक्रांताओं द्वारा तलवार की नोक पर मथुरा और ज्ञानवापी समेत अन्य मंदिरों पर जो कब्ज़ा किया, उसे सरकारों द्वारा जायज ठहरा दिया गया। समाज के लिए 2 तरह के कानून नहीं हो सकते हैं। ये न सिर्फ असंवैधानिक, बल्कि अतार्किक भी है। इसलिए मैं प्रार्थना करता हूँ कि देशहित में इस कानून को समाप्त किया जाए।”

क्या है Worship Act 1991?

1991 Worship Act के तहत कोई भी धार्मिक स्थल जो15 अगस्त 1947 से पहले बने है उसे दूसरे धर्मस्थल में नहीं बदला जा सकता है। यदि कोई फिर भी धार्मिक स्थल से छेड़छाड़ कर उसे बदलना चाहेगा तो उसे 3 साल की कैद और जुर्माना होगा। गौरतलब है कि, राम जन्मभूमि मंदिर मामला तब कोर्ट में था। इसलिए उसे इससे अलग रखा गया था। हालाँकि, बाद में ज्ञानवापी मामले में इसी कानून का हवाला देते हुए मस्जिद कमेटी और मुस्लिम पक्ष विरोध करता आया है।

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