ट्रिपल तलाक पीड़ित महिला महिलाओं के लिए बनी नजीर, ऑटो रिक्शा चलाकर करती है परिवार का भरण पोषण

ट्रिपल तलाक जो महिलाओं के लिए अभिशाप है और तलाक के बाद महिलाओं को जिंदगी जीना और अगर साथ में महिलाओं के बच्चे हो तो जिंदगी जीना और भी मुश्किल लगने लगती है. लेकिन इस मुश्किल घड़ी को आसान बनाने के लिए उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर की रहने वाली ट्रिपल तलाक की पीड़ित एक महिला ने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया.

उत्तराखंड : ट्रिपल तलाक जो महिलाओं के लिए अभिशाप है और तलाक के बाद महिलाओं को जिंदगी जीना और अगर साथ में महिलाओं के बच्चे हो तो जिंदगी जीना और भी मुश्किल लगने लगती है. लेकिन इस मुश्किल घड़ी को आसान बनाने के लिए उत्तराखंड के उधम सिंह नगर जिले के काशीपुर की रहने वाली ट्रिपल तलाक की पीड़ित एक महिला ने अपने आप को आत्मनिर्भर बनाया. और वह महिला काशीपुर मैं ऑटो चला कर अपने बच्चों का भरण पोषण कर रही है. काशीपुर में महिला के ऑटो सड़कों पर दौड़ रहा है. जिससे कि क्षेत्र में भूरी भूरी प्रशंसा की जा रही है. और दूसरी महिलाओं के लिए मिसाल बन रही है.

काशीपुर के रहने वाली ट्रिपल तलाक पीड़ित शबनम की. तलाक तलाक तलाक इन तीनों शब्दों ने मानो शबनम के पूरे जीवन को झकझोर कर रख दिया था. तब उसे खुद के साथ तीन बच्चों का भविष्य भी अंधेरे में पड़ा नजर आ रहा था. चारो तरफ मजबूरियां और परेशानियों के सिवा शबनम को कोई और रास्ता दिखाई ना दिया. फिर भी जीवन के सबसे मुश्किल दौर में शबनम ने सरेंडर करने की वजह आत्मनिर्भरता का रास्ता चुना,बच्चों को सुनहरा भविष्य और खुद को नई पहचान देने के लिए एक नया रास्ता चुन लिया शबनम ने जैसे-तैसे कर एक ऑटो रिक्शा फाइनेंस कराया और उसको चलाना सीखा, देश के साथ अपने आप को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सड़कों पर उतर आई.

शबनम के हौसले को हर कोई सलाम कर करता दिखाई दिया. काशीपुर के ढकिया गुलाबो फसीयापुरा गांव निवासी शबनम की शादी 2011 में जसपुर में हुई थी शुरुआत में सब कुछ ठीक चला दो बेटियों व बेटे के साथ में ससुराल में खुशी-खुशी गुजार रही थी बाद में ना जाने किसकी नजर लगी कि पति शबनम की उपेक्षा करने लगा और 2017 तक ये रिश्ता तालक तक पहुंच गया. पति ने बच्चों की जिम्मेदारी से भी मुंह मोड़ लिया तो उन्हें लेकर वह अपने गांव काशीपुर आ गई,घर पर बैठने की बजाय घरों में काम करने के साथ सिलाई सीख कर इसे आजीविका का साधन बनाया बच्चों को सरकारी स्कूल में प्रवेश दिलाया पति से कानूनी लड़ाई लड़ी और अपनी कमाई से ऑटो खरीद,लोन कराया अब आत्मनिर्भरता की राह पर चल पड़ी.

ऑटो रिक्शा चालक की पुत्री आयशा ने बताया कि हमारी मम्मी दिन रात काम करती हैं और उनके आराम के लिए समय नहीं मिलता सुबह सवेरे उठकर हमारी मम्मी तीनो भाई बहन के लिए नाश्ता बनाती हैं फिर उसके बाद हमें तैयार करके स्कूल भेजती है स्कूल भेजने के बाद फिर ऑटो लेकर काम करने जाती हैं दोपहर में हमें स्कूल से लाकर हमें खाना खिलाती हैं और फिर फोटो लेकर काम करने चली जाती है

ऑटो रिक्शा चालक महिला की छोटी बहन ने बताया जब से हमारी मां का इंतेक़ाल हुआ . तब से मेरी बड़ी बहन शबनम ने मुझे अपने घर में रखा और मेरा अपने बच्चों की तरह पूरा ख्याल रखती हैं . मेरी मां व पिता दोनों यही है . हमारे लिए बहुत मुश्किल की घड़ी थी . जब हमारी बहन ने ऑटो रिक्शा चलाना शुरू किया

जिन परिस्थितियों में लोग आत्महत्या करने के लिए मजबूर हो जाते हैं . उन परिस्थितियों में शबनम ने आत्मनिर्भर बनने का रास्ता चुना और उन महिलाओं के लिए एक मिसाल कायम की हैं . जो महिलाएं कठिन परिस्थितियों में अपने आप को मजबूर और लाचार महसूस करती हैं . अपने हौसलों की उड़ान उड़ कर शबनम समाज के लिए नजीर पेश की है .

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