खरना के साथ शुरू हुआ छठ महापर्व का दुसरा दिन, 36 घंटे के निर्जला व्रत की आज से शुरुआत…

प्रकृति और सूर्योपासना का ये महाव्रत सौभाग्य, सुख और समृद्धि देने वाला होता है. रोग निवारण और स्वास्थ्य समृद्धि को लेकर इसका विशेष महत्त्व है. वास्तव में खरना वाले दिन से ही लोग प्रकृति प्रदत्त संशाधनों पर आधारित हो 36 घंटे के सबसे कठिनतम व्रत के नियमों का पालन करते हैं. लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना, लहसुन प्याज का सेवन ना करना आदि.

शनिवार को छठ महापर्व के दूसरे दिन की शुरुआत हुई. दूसरे दिन के छठ व्रत को खरना कहा जाता है. आज से निर्जला व्रत की शुरआत होती है जो उगते सूर्य को अर्ध्य देने के साथ पारणा वाले दिन समाप्त होती है. इस बीच महाप्रसाद तैयार किया जाता है. छठ पूजा के सामानों की खरीददारी में आज से लोग जुट जाएंगे.

प्रकृति और सूर्योपासना का ये महाव्रत सौभाग्य, सुख और समृद्धि देने वाला होता है. रोग निवारण और स्वास्थ्य समृद्धि को लेकर इसका विशेष महत्त्व है. वास्तव में खरना वाले दिन से ही लोग प्रकृति प्रदत्त संशाधनों पर आधारित हो 36 घंटे के सबसे कठिनतम व्रत के नियमों का पालन करते हैं. लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाना, लहसुन प्याज का सेवन ना करना आदि.

महाप्रसाद के तौर पर गाय के दूध में बनी खीर, गुड़ और आटे से तैयार होने वाला मिष्ठान (स्थानीय भाषा में ठेकुआ), चिवड़ा आदि तैयार किया जाता है. इसके साथ पूजा अनुष्ठान की तैयारियां शुरू हो जाती हैं. छठी मैया से मांगी मनोकामना अगर पूर्ण हो गई है तो आपको अपनी मनोकामना को पूरा होने की विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए.

वैदिक आर्य संस्कृति कि छठ पूजा में झलक देखने को मिलती है. ये पर्व मुख्य: रुप से ऋषियों द्वारा लिखी गई ऋग्वेद में सूर्य पूजन, ऊषा पूजन और आर्य परंपरा के अनुसार मनाया जाता है. वहीं सूर्य भगवान को जिस बर्तन से अर्ध्य देते हैं, वो चांदी, स्टेनलेस स्टील, ग्लास या प्लास्टिक का नहीं होना चाहिए.

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