सपा के बाबू सिंह ने जौनपुर में बिगाड़ा BJP-BSP का खेल, अब अगड़ों का पिछड़ों से कैसे होगा मेल…?

एक तरफ बसपा कि श्रीकला सिंह तो दूसरी तरफ सपा के बाबू सिंह के मैदान में आने से BJP उम्मीदवार कृपाशंकर सिंह की मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है।

उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल की जौनपुर लोकसभा सीट पर मुकाबला बड़ा ही दिलचस्प हो गया है। दरअसल पूर्वांचल के इस हॉट सीट पर लड़ाई त्रिकोणीय हो गई है। एक तरफ बसपा कि श्रीकला सिंह जो कि बाहुबली नेता और बसपा के पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पत्नी है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी के बाबू सिंह कुशवाहा के मैदान में आने से भाजपा के उम्मीदवार पूर्व कांग्रेसी कृपाशंकर सिंह की मुसीबत बढ़ती नजर आ रही है। हालांकि, यह सीट वर्तमान में बसपा के पास है।

अब यहां के सियासी खेल को समझा जाए तो समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार बाबू सिंह कुशवाहा हैं, जो पिछड़ी जाति से आते हैं। देखा जाए तो जौनपुर सीट पर पिछड़ी जाति के मतदाताओं की संख्या भी काफी है। जिसका फायदा सपा को मिलता दिख रहा है। दूसरी ओर, बसपा के प्रत्याशी श्रीकला सिंह और भाजपा प्रत्याशी कृपाशंकर सिंह राजपूत जाति पर प्रभाव डाल सकते हैं। ऐसे में इन दोनों के बीच वोट बंटने के आसार लगाए जा रहे हैं। ऐसे में इसका फायदा बाबू सिंह को मिल सकता है इस बात को भी नाकारा नहीं जा सकता है। क्योंकि जहां तक सपा उम्मीदवार का सवाल है तो उन्हें क्षेत्र के पिछड़े वोटरों से उम्मीद है। खुद बाबू सिंह कुशवाहा भी उन्हें रुझाने में अपना पुरा दमखम लगा रहे हैं।

अब अगर श्रीकला की बात करें तो उनसे पहले हमे धनंजय का जौनपुर में कितना दबदबा है उसको जानना पड़ेगा :

दरअसल, यूपी की राजनीति में पूर्व सांसद धनंजय सिंह की पैठ बहुत ही मजबूत मानी जाती है। कारण है राजपूत मतदाता और उनके बीच धनंजय की अच्छी पकड़। जौनपुर लोकसभा क्षेत्र धनंजय सिंह की कर्मभूमि है। यहां के लोगों में धनंजय की छवि बड़े समाजसेवी और गरीबों के मददगार के रूप में विख्यात है। उड़ती खरे तो ये भी थी कि वे स्वयं यहां से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहे थे, मगर अपहरण – रंगदारी के केस मे 7 वर्ष की सजा होने के बाद जेल जाने से उनके इस सपने पर पानी फिर गया। यही कारण है कि उन्हें अपनी पत्नी श्रीकला को आगे करना पड़ा। ऐसे में श्रीकला को बसपा के कोर वोटर का भी फायदा मिल सकता है।

यहां एक और बात ध्यान देने वाली है इस सीट पर ब्राह्मणों की संख्या भी सबसे ज्यादा है, मगर इस बार किसी भी पार्टी का उम्मीदवार ब्राह्मण नहीं है। ऐसे में ब्राह्मणों का रुख किस ओर होगा ये भी देखना दिलचस्प होगा। सियासी जानकारों का मानना है कि इस बार जिस तरह से भाजपा ने जिस तरह राम मंदिर निर्माण को मुद्दा बनाया है तो हो सकता है कि ब्राह्मणों का वोट भी भाजपा के झोली में चला जाए। मगर होगा क्या ये तो चुनाव परिणाम ही बताएगा हम तो बस यहां के सियासी खेल का अनुमान ही लगा सकते हैं।

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