“अथ श्री परशुराम कथा”, सनातन मत के “सप्त चिरंजीवी” में से एक

श्रीहरि विष्णु के अवतार एवं स्वयं महादेव शंकर के शिष्य भगवान परशुराम का धरावतरण अक्षयतृतीया की पवित्र तिथि को ऋषि जमदग्नि एवं माता रेणुका के घर में हुआ था। भगवान परशुराम के पिता ऋषि जमदग्नि ऋषि विश्वामित्र की बड़ी बहन के पुत्र थे। अपने सन्यास आश्रम से पूर्व के जीवन में ऋषि विश्वामित्र विश्वविजेता योद्धा सम्राट कौशिक के नाम से विख्यात थे। भगवान परशुराम सनातन वांग्मय में अतुलित बल, अदम्य साहस, दृढ़ संकल्पशक्ति एवं नैतिक आचार के रक्षक के रूप में जाने जाते हैं।

भगवान परशुराम स्वयं श्रीहरि विष्णु के अवतार हैं, परंतु अवतार लीला में भगवान परशुराम ने शस्त्र शिक्षा महादेव शंकर से प्राप्त की है। स्वयं महादेव शंकर ने समस्त शैव शस्त्रों पर पूर्ण अधिकार प्रदान करते हुए अपना प्रमुख अस्त्र “परशु” जमदग्नि पुत्र राम को प्रदान कर उन्हें परशुराम उपाधि प्रदान की है। परशु अस्त्र भगवान परशुराम को प्रदान करने के पश्चात महादेव शंकर ने प्रधान अस्त्र के रूप में त्रिशूल धारण किया यह पौराणिक कथा है। भगवान परशुराम ने ही गंगापुत्र देवव्रत को युद्ध शिक्षा दी थी। गंगा पुत्र देवव्रत का ही अधिक प्रसिद्ध नाम भीष्म पितामह है। महाभारत की कथा के अनुसार काशीराज की पुत्रियों अम्बा, अंबिका एवं अंबालिका के हरण के प्रसंग में भगवान परशुराम नैतिक आचार की रक्षा हेतु भीष्म से युद्धरत हुए। यह युद्ध देववाणी द्वारा अनिर्णीत ही रोका गया था। भगवान परशुराम से देवताओं द्वारा यह याचना की गई थी कि कलियुग के प्रारंभ हेतु महाभारत के महायुद्ध की रचना दैव योजना का अंग है। आचार का नैतिक ह्रास द्वापर कलियुग संधिकाल का चिन्ह है। यह महायुद्ध ही कलियुग के आरंभ का मार्ग प्रशस्त करेगा। अतः इस काल में आचार का ह्रास अवतारपुरुष द्वारा रोका जाना युग योजना को अवरुद्ध कर देगा। देववाणी द्वारा हस्तक्षेप पर आचार ह्रास को युगपरिवर्तन की नियति मान भगवान परशुराम ने भीष्म पितामह से युद्ध अनिर्णीत ही छोड़ दिया। मान्यता यह है कि कलियुग के उत्तरार्ध में पुनः आचार की स्थापना हेतु श्रीहरि का कल्कि अवतार होगा।

पौराणिक कथानक के अनुसार कल्कि अवतार को युद्ध की शिक्षा भगवान परशुराम द्वारा ही प्राप्त होनी है। नैतिक आचार के प्रधान संरक्षक भगवान परशुराम के शिष्य कल्कि अवतार श्रीहरि पुनः नैतिक आचार को स्थापित कर सतयुग की स्थापना करेंगे यह पौराणिक मत है। भगवान परशुराम सनातन मत के “सप्त चिरंजीवी” में से एक हैं। भगवान परशुराम का प्रमुख स्थल ओडिशा में गंजम जनपद से बने नए जनपद गजपति स्थित महेंद्रगिरी पर्वत को माना जाता है।

भगवान परशुराम की आराधना परशुराम गायत्री मंत्र से की जाती है। मान्यता है कि भगवान परशुराम की नियमित आराधना से आराधक के व्यक्तित्व में सदाचार स्थिर होता है। जिस घर में नियमित परशुराम गायत्री का पाठ होता है वह कुटुंब संपत्ति एवं भूमि के स्वामित्व से समृद्ध होता है। यह भी मान्यता है कि कलयुग में अधर्म प्रत्येक व्यक्ति के मन पर अधिकार करने लगता है तब भगवान परशुराम का निरंतर ध्यान मन को दृढ़ कर कलयुगी प्रवृत्ति से चित्त की रक्षा करने एवं आराधक को सदाचार पर बने रहने की शक्ति प्रदान करता है।

लेखक : विश्व भूषण

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