मैनपुरी की इस लेखिका ने अन्तर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार जीतकर रचा है इतिहास

नामचीन भारतीय लेखिका गीतांजलि श्री अन्तर्राष्ट्रीय बुकर पुरस्कार-2022 जीतने वाली पहली भारतीय महिला बनी है. उनके उपन्यास ‘रेत समाधि’ (सैंड ऑफ टाम्ब) के लिए उन्हें इन इंटरनेशनल प्राइज से नवाजा गया है. गीतांजलि श्री उत्तर प्रदेश के मैनपुरी की मूल निवासी है और फिलहाल दिल्ली में रहती है.

गीतांजलि श्री का ‘रेत समाधि’ विश्व की उन 13 श्रेष्ठ कृतियों में शामिल था जिन्हें बुकर प्राइज के लिए नोमीनेट किया गया था. दिल्ली के राजकमल प्रकाशन का ‘रेत समाधि’ हिंदी की पहली कृति है जो बुकर प्राइज के लिए लान्गलिस्ट हुई, शाटलिस्ट हुई और इसने बुकर प्राइज भी जीता.

अपने उपन्यास के साथ गीतांजलि श्री / picture credit BBC Hindi

गीतांजलि श्री के ‘रेत समाधि’ के अंग्रेजी अनुवाद ‘सैंड ऑफ टाम्ब’ की अनुवादक डेजी रॉकवेल है. करीब 50 लाख रूपये कीमत के इस पुरस्कार के लिए इस उपन्यास का मुकाबला 5 अन्य किताबों से था. पुरस्कार की राशि लेखिका और अनुवादक के बीच बराबर-बराबर बांटी जायेगी.

3 दशकों की तपस्या के बाद अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान

गीतांजलि श्री बीते 30 सालों से लेखन की दुनियां में है. उनका पहला उपन्यास ‘माई’ था. इसके बाद उन्होने ‘हमारा शहर उस बरस’ प्रकाशित हुए थे. ये दोनो उपन्यास 90 के दशक में आये थे. इसके बाद ‘तिरोहित’ और ‘खाली जगह’ भी प्रकाशित हुए. गीतांजलि श्री ने कई कहानी संग्रह भी लिखे है.

चुपचाप और एकांत में रहने वाली लेखिका गीतांजलि श्री ने अन्तर्राष्ट्रीय बुकर प्राइज जीतने के बाद अपनी स्पीच में कहा कि, “मैने कभी बुकर प्राइज़ जीतने की कल्पना नहीं की थी. कभी सोचा ही नहीं कि मैं ये कर सकती हूँ. ये एक बड़ा पुरस्कार है. मैं हैरान, प्रसन्न , सम्मानित और विनम्र महसूस कर रही हूँ.”

गीतांजलि श्री का उपन्यास रेत समाधि /picture credit-BBC Hindi

अंग्रेजी, फ्रेंच, जर्मन सहित कई विदेशी भाषाओं में उनकी रचनाऐं अनुवादित हुई है. गीतांजलि श्री का उपन्यास ‘माई’ का अंग्रेजी अनुवाद प्रतिष्ठित ‘क्रॉसवर्ड अवार्ड’ के लिए भी नोमीनेट हो चुका है. गीतांजलि के लेखन शिल्प को हिंदी साहित्य में दुर्लभ माना जाता है.

अमेरिकी अनुवादक ने हिंदी को दिलाई अविश्वसनीय कामयाबी-

‘रेत समाधि’ का अंग्रेजी अनुवाद करने वाली अमेरिकन लेखिका और अनुवादक डेजी रॉकवेल की कई भाषाओं पर जबरदस्त पकड़ है. उन्होने उपेन्द्रनाथ अश्क के उपन्यास ‘गिरती दीवारों’ पर अपनी पीएचडी की है. यह डेजी ही थी जिसके प्रयास की बदौलत गीतांजलि श्री की रचना अन्तर्राष्ट्रीय पटल पर अपना जादू बिखेर सकी. डेजी ने हिंदी के कई बड़े लेखकों की रचनाओं का भी अनुवाद किया है.

Related Articles

Back to top button