महाश्मशान में चिता भस्म की होली पर गहराया विवाद, काशी के विद्वानों ने बताया परंपरा के नाम पर कुप्रथा का बढ़ावा !

वाराणसी। धर्म की नगरी काशी में होली का पर्व बेहद ही धूमधाम से रंगभरी से शुरू हो जाता है। वृंदावन के बाद काशी की होली पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। वही कुछ वर्षों के काशी महाश्मशान पर धधकती चिताओं के बीच भस्म की होली खेली जाने लगी है। जिसे लेकर काशी के विद्वानों ने अपना रोष प्रकट किया है। काशी के विद्वानों के अनुसार महाश्मशान पर चिताओं के बीच होली खेलने का कोई शास्त्रीय और पौराणिक मान्यता नहीं है। एक लोक गीत के बाद कुछ वर्ष पहले इस प्रथा को शुरू किया गया है, जो शास्त्रों के अनुसार कुप्रथा है। शास्त्रों के अनुसार महाश्मशान पर बिना कारण जाने की अनुमति नही होती है। केवल श्मशान घाट पर किन्नर, अघोरी और तांत्रिक ही बिना कारण जा सकते है, लेकिन अब नए प्रचलन के तहत युवकों के साथ युवतियां भी जा रही है, जो शास्त्रों के अनुसार गलत है।

श्मशान घाट पर जाने पर युवतियों को लगता है पाप, ग्रहों की दशा नही होती है अनुकूल : ज्योतिषाचार्य

काशी के ज्योतिषाचार्य पंडित वेद प्रकाश यादव के अनुसार श्मशान घाट पर महिलाओं को जाने की अनुमति नही होती है। आज के समय में महिला और युवतियां बड़ी संख्या में जाकर काशी के श्मशान घाट पर चिताओं के भस्म से होली खेलती है। ऐसे में जहां एक तरफ कुप्रथा को बढ़ावा मिल रहा है, तो वही श्मशान घाट पर होली खेलने वाली युवतियों और महिलाओं के ग्रह भी उनके अनुकूल नहीं रहता है। श्मशान में चिताओं के भस्म से होली सिर्फ महादेव यानी भगवान शिव ही खेल सकते है। रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद काशी के महाश्मशान पर होली खेले जाने को लेकर विद्वानों ने बताया कि शास्त्रों में रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मणिकर्णिका घाट पर स्थित मशाननाथ के मंदिर में किन्नरों, अघोर और तांत्रिको के द्वारा भस्म चढ़ाने की परंपरा है। ऐसा नहीं है, कि कोई भी आम व्यक्ति जाकर चिताओं के भस्म की होली श्मशान घाट पर खेले।

विद्वानों ने चिता भस्म की होली को बंद करवाने की मांग, आयोजक दे रहे है कुप्रथा को बढ़ावा !

काशी के विद्वानों के अनुसार बिना शस्त्रगत किसी भी प्रथा को कुप्रथा मना जाता है। ऐसे में ऐसी नई परंपरा जिसे प्रथा के नाम पर बढ़ावा दिया जा रहा है, उसे बंद कर देना चाहिए। वही इस परंपरा को लेकर काशी विद्वत परिषद के महामंत्री प्रो. रामनारायण द्विवेदी बताया कि उन्होंने न तो किसी शास्त्र में चिता भस्म की होली की प्रथा को पढ़ा है और न ही कभी सुना है। काशी में परंपरा के नाम पर नई चीजों को लाना और समाज के ऊपर थोपना बेहद ही गलत है। वही काशी हिंदू विश्वविद्यालय के वेद विभाग के पूर्व अध्यक्ष प्रो.हरिश्वर दीक्षित ने भी महाश्मशान पर होली की किसी परंपरा से इंकार किया। गौरतलब है, कि काशी में रंगभरी एकादशी के एक दिन बाद मणिकर्णिका घाट पर बड़ी संख्या में युवा और युवतियों की टोली चिता भस्म की होली खेलते है, वही कुछ वर्ष पहले हरिश्चंद्र घाट पर रंगभरी एकादशी के दिन चिताओं के बीच होली खेलने का आयोजन शुरू किया गया है। इस बार हरिश्चंद्र घाट पर 20 मार्च और मणिकर्णिका घाट पर 21 मार्च को चिता भस्म की होली का अयोजन किया जाना है।

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