लोहिया की कर्मभूमि कन्नौज बना रणभूमि, जाने क्या है समीकरण…?

कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख हैं. इनमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिला मतदाता हैं...

समाजवादी पुरोधा डॉ राम मनोहर लोहिया की कर्मभूमि रही कन्नौज  लोकसभा सीट से सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव द्वारा नामांकन करने से यह सीट राजनीतिक रणभूमि में तब्दील हो गई है. हिंदू पुराणों में कन्नौज का उल्लेख कान्यकुब्ज के रूप में मिलता है. मध्यकाल में भी यह भारत का महत्वपूर्ण राज्य था. 1194 में मुहम्मद गोरी द्वारा कन्नौज के राजा जयचंद को पराजित कर मार डालने के बाद इस नगर का महत्व कम होता चला गया. इत्र उद्योग की वजह से इसे इत्र नगरी भी कहा जाता है. आजादी के बाद 1967 में इस सीट से प्रमुख समाजवादी नेता डा राम मनोहर लोहिया के चुनाव लड़ने पर कन्नौज फिर सुर्खियों में आया था. कन्नौज लोकसभा सीट सूबे की हाई प्रोफाइल सीटों में से एक है.

मशहूर समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया से लेकर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव तक ने संसद में इस लोकसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है. इस सीट पर अब तक भाजपा दो बार ही जीती है, जबकि बसपा को यहां जीत नसीब नहीं हुई है. इस बीच कन्नौज लोकसभा सीट काफी सुर्खियों में है, इसकी वजह खुद सपा चीफ अखिलेश यादव हैं. दरअसल  तेज प्रताप सिंह यादव की जगह अब खुद अखिलेश यादव ने कन्नौज से चुनाव  लड़ने के लिए पर्चा दाखिल कर दिया हैं.

कन्नौज लोकसभा सीट साल 1967 आम चुनाव में अस्तित्व में आई. इस चुनाव में राम मनोहर लोहिया ने जीत हासिल की. लोहिया संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के उम्मीदवार थे. लोहिया  कन्नौज में सभी विधानसभा  क्षेत्र में हारे थे सिवाय औरैया की  विधूना विधानसभा छोड़कर जहां वह हार को कवर करते हुए  कुल 341 वोटों से ही जीत हासिल कर सके. इसलिए  लोहिया जी का बिधूना से खासा लगाव रहा. लोहिया के निधन के बाद  साल 1971 आम चुनाव में कांग्रेस ने ये सीट छीन ली. कांग्रेस के उम्मीदवार सत्य नारायण मिश्र ने जीत हासिल की. इसके बाद दो चुनाव में जनता पार्टी को जीत मिली. साल 1977 में  जनता पार्टी के राम प्रकाश त्रिपाठी और साल 1980 में जनता पार्टी  के ही छोटे सिंह यादव ने जीत हासिल की. साल 1984 आम चुनाव में कांग्रेस की लहर में शीला दीक्षित सांसद चुनी गईं. मगर साल 1989 आम चुनाव में जनता दल के उम्मीदवार छोटे सिंह यादव ने जीत हासिल की. साल 1991 चुनाव में भी छोटे सिंह यादव ही सांसद बने. लेकिन इस बार वह जनता दल के टिकट पर चुनाव मैदान में उतरे थे. 

साल 1996 आम चुनाव में पहली बार कन्नौज लोकसभा सीट पर भाजपा को पहली बार जीत मिली. भाजपा के उम्मीदवार चंद्र भूषण सिंह ने जीत हासिल की. लेकिन साल 1998 चुनाव में इस सीट पर समाजवादी पार्टी का खाता खुला. समाजवादी पार्टी के उम्मीदवार प्रदीप यादव को जीत मिली. साल 1999 चुनाव में मुलायम सिंह यादव इस सीट से सांसद चुने गए. लेकिन उन्होंने ये सीट छोड़ दी. 

साल 2000 में इस सीट पर उपचुनाव हुआ. इसमें अखिलेश यादव ने भारी मतों से जीत दर्ज की. उन्होंने बसपा उम्मीदवार अकबर अहमद डम्पी को हराया था. साल 2004 आम चुनाव में अखिलेश यादव एक बार फिर कन्नौज सीट से मैदान में उतरे और उन्होंने बसपा उम्मीदवार ठाकुर राजेश सिंह को हराया. साल 2009 आम चुनाव में अखिलेश यादव ने फिर से जीत दर्ज की. साल 2012 में विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की जीत के बाद अखिलेश यादव ने इस सीट को छोड़ दिया. इसी साल इस सीट पर उपचुनाव हुए, जिसमें डिंपल यादव निर्विरोध सांसद चुनी गईं. साल 2014 आम चुनाव में मोदी लहर में भी समाजवादी पार्टी की उम्मीदवार डिंपल यादव ने इस सीट को जीत लिया. हालांकि जीत का अंतर काफी कम था. मालूम हो कि साल 2019 आम चुनाव में समाजवादी पार्टी और बसपा का गठबंधन था. मगर इसके बावजूद भाजपा ने डिंपल यादव को हरा दिया. तब भाजपा के सुब्रत पाठक को 5 लाख 63 हजार 87 वोट, जबकि डिंपल यादव को 5 लाख 50 हजार 734 वोट मिले थे. इस तरह से भाजपा ने सालों बाद इस सीट पर जीत हासिल की थी.

आपको बता दें कि कन्नौज लोकसभा क्षेत्र में कुल मतदाताओं की संख्या करीब 18 लाख हैं. इनमें 10 लाख पुरुष और 8 लाख महिला मतदाता हैं. इस लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा मुस्लिम और यादव मतदाता हैं. मुस्लिम मतदाताओं  की संख्या 2.50 लाख है, जबकि यादव मतदाताओं  की संख्या भी लगभग  इतनी ही है. इसके अलावा 2.5 लाख दलित मतदाता भी हैं. जबकि इस क्षेत्र में ब्राह्मण मतदाता 2.7 लाख और राजपूत मतदाता 1.8 लाख हैं. भाजपा ने यहां एक बार फिर सुब्रत पाठक को ही चुनाव मैदान में उतारा है जबकि बसपा ने  इमरान बिन जफर को अपना प्रत्याशी बनाया है.

लेखक – मुनीष त्रिपाठी

(पत्रकार, इतिहासकार और साहित्यकार)

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