मौनी अमावस्या पर पढ़ें इससे जुडी यह खास कथा, पूर्ण होगी हर मनोकामना

माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी या माघ अमावस्या नाम से जाना जाता है। इस दिन मौन रहते हुए नदियों में स्नान करना चाहिए।

डिजिटल डेस्क: हमारे हिंदू धर्म में अमावस्या का ख़ास महत्व है। शुक्रवार यानी 9 फरवरी को मौनी अमावस्या का पवित्र दिन है। माघ माह के कृष्ण पक्ष में आने वाली अमावस्या को मौनी अमावस्या या माघ अमावस्या के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि इस दिन मौन रहते हुए आपको पवित्र नदियों में स्नान और दान करना चाहिए। माघ अमावस्या कल यानी 9 फरवरी को है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन सृष्टि के संचालक मनु का जन्म हुआ था, इसलिए भी इसे मौनी अमावस्या कहा जाता है। ऐसा भी माना जाता है कि मौनी अमावस्या के दिन व्रत भी रखा जाता है जिसको सफल बनाने के लिए कथा पढ़ी जाती है। मगर क्या आपको पता है मौनी अमावस्या आखिर हिन्दू धर्म में इतना महत्वपूर्ण क्यों है और इसके पीछे की कहानी क्या है। अगर नहीं तो आइए जानते हैं उस कथा के बारे में।

मौनी अमावस्या कथा

मान्यताओं के अनुसार प्राचीन काल में कांचीपुरी नाम के एक नगर में देवस्वामी नाम का एक ब्राह्मण रहता था। जिसके 7 पुत्र और एक पुत्री थी। उसकी बेटी का नाम गुणवती और पत्नी का नाम धनवती था। पति पत्नी दोनों ही धर्मात्मा थे और धर्म पूर्वक ही अपनी गृहस्थी भी चलाते थे। जब उनकी बेटी सयानी हुई तो उन्होंने अपने छोटे बेटे को बहन के लिए सुयोग्य वर देखने का आदेश देते हुए नगर से बाहर भेज दिया। उसने बेटी की कुंडली एक ज्योतिषी को दिखाई। कुंडली देख ज्योतिषी ने कहा कि कन्या का विवाह होते ही वह विधवा हो जाएगी। यह बात जानकार देवस्वामी दुखी हो गया और ज्योतिषी से इसका उपाय पूछा। तब उसने उपाय बताते हुए कहा कि सिंहलद्वीप में एक पतिव्रता महिला सोमा नाम की धोबिन है। वह अगर तुम्हारे घर आकर पूजा करे तो कुंडली का ये दोष दूर हो जाएगा। यह सुनकर देवस्वामी ने बेटी के साथ सबसे छोटे बेटे को सिंहलद्वीप भेजा। दोनों समुद्र के किनारे पहुंचकर उसे पार करने का उपाय खोजने लगे, मगर जब कोई उपाय नहीं मिला तो भूखे-प्यासे के साथ वहां मौजूद एक पीपल के वृक्ष के नीचे आराम करने लगे।

वहीँ उस पेड़ पर गिद्ध का परिवार रहता था। गिद्ध के बच्चों ने सुबह से भाई बहन की बातों और क्रियाकलापों को सुनने और देखने के बाद तो वे भी दुखी होने लगे। जब गिद्ध के बच्चों के पास उनकी मां वापस खाना लेकर आई, तो बच्चों ने उससे उन भाई बहन के बारे में बताया। उनकी बातें सुनकर गिद्धों की मां को दया आ गई और बच्चों के कहने से उसने कहा कि तुम लोग चिंता मत करो मैं इन्हें सागर पार करवा दूंगी। यह सुन बच्चों ने ख़ुशी ख़ुशी भोजन ग्रहण किया। गिद्ध की माता बच्चों को भोजन करवाकर दोनों भाई बहनों के पास आई और उसने पेड़ के नीचे बैठे भाई बहन से कहा कि वह उनकी समस्या का समाधान कर देगी। यह सुनते ही दोनों खुश हो गए वन में मौजूद कंद मूल को खाकर रात काट ली।। अगले दिन सुबह गिद्धों की मां ने दोनों को सोमा के घर पहुंचा दिया।

गुणवती सोमा धोबन के घर के पास छुपकर रहने लगी। हर दिन सुबह होने से पहले गुणवती सोमा का घर लीप दिया करती थी। एक दिन सोमा ने अपनी बहुओं से पूछा कि प्रतिदिन सुबह हमारा घर कौन लीपता है। बहुओं ने प्रशंसा के लोभ से कहा कि हमारे अलावा यह काम और कौन करेगा। लेकिन सोमा को बहुओं की बातों पर भरोसा नहीं हुआ और वह यह जानने के लिए पूरी रात जागती रही कि कौन है जो हर दिन सूर्योदय से पहले घर लीप जाता है। सोमा ने देखा कि, एक कन्या उसके आंगन में आई और आंगन लीपने लगी। सोमा गुणवती के पास आई और उससे पूछने लगी कि तुम कौन हो और क्यों हर सुबह मेरे आंगन को लीपकर चली जाती हो। गुणवती ने तब अपना सारा हाल सोमा से कह डाला। गुणवती के बातों को सुनकर सोमा ने कहा कि, तुम्हारे सुहाग के लिए मैं तुम्हारे साथ चलूंगी।

सोमा ने ब्राह्मण के घर आकर पूजा किया, लेकिन विधि का विधान कौन टाल सकता है। गुणवती का विवाह होते ही उसके पति की मृत्यु हो गई। तब सोमा ने अपने सभी पुण्य गुणवती को दान कर दिया। सोमा के पुण्य से गुणवती का पति जीवित हो गया। लेकिन पुण्यों की कमी से सोमा के पति और बेटे की मृत्यु हो गई। लेकिन सोमा ने अपना घर छोड़ने से पहले बहुओं से कह दिया था कि मेरे लौटने से पहले अगर मेरे पति और बेटों को कुछ होता है तो उनके शरीर को संभलकर रखना। बहुओं ने सास की आज्ञा को मानकर सभी के शरीर को संभलकर रखा। उधर सोमा ने सिंहलद्वीप लौटते हुए रास्ते में पीपल के वृक्ष की छाया में विष्णुजी की पूजा कर 108 बार पीपल की परिक्रमा की। इसके पुण्य के प्रभाव से सोमा के घर लौटते ही उसके पति और बेटे फिर से जीवित हो गए।

पूजन विधि

मौनी अमावस्या के दिन सुबह और शाम स्नान के पहले संकल्प लें। पहले जल को सिर पर लगाकर प्रणाम करें और फिर स्नान करना आरंभ करें। स्नान करने के बाद सूर्य को काले तिल मिलाकर अर्घ्य दें। इसके बाद साफ वस्त्र धारण करें और फिर मंत्रों का उच्चारण करें। मंत्र जाप के बाद वस्तुओं का दान करें। चाहें तो इस दिन जल और फल ग्रहण करके उपवास रख सकते हैं।

मौनी अमावस्या व्रत के लाभ

माघ मास में तिल, ऊनी वस्त्र, घी का दिन बहुत ही पुण्यदायी होता है। इसलिए मौनी अमावस्या पर इन वस्तुओं का दान जरूर करना चाहिए। यह जरूरी नहीं कि आप बहुत दान करें लेकिन अपनी श्रद्धा और क्षमता के अनुसार थोड़ा दान भी आप कर सकते हैं। इससे भगवान शिव की कृपा प्राप्त होती है और व्यक्ति मृत्यु पश्चात उत्तम लोक में स्थान पाता है। व्यक्ति मुनि पद को प्राप्त करता है। एक मान्यता है कि मौनी अमावस्या के दिन मनुष्यों के धरती पर लाने वाले प्रथम मनुष्य मनु ऋषि का जन्म हुआ था। मनु ऋषि के नाम से भी इस व्रत का नाम मौनी अमावस्या है।

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