
पिछले साल विश्व स्तर पर औसत तापमान में वृद्धि 1.1 से 1.2 डिग्री सेल्सियस (2 से 2.2 डिग्री फारेनहाइट) हो गई थी। तापमान में यह वृद्धि विश्व भर के लिए एक चिंता का सबब बना हुआ है। वैश्विक तापमान का इस तरह से बढ़ना औद्योगीकरण और बड़ी मात्रा में लोगों द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड का शुद्ध हवा में उत्सर्जन का नतीजा है जिसके कई जलवायवीय प्रभाव भी देखने को मिलते हैं।
वैश्विक तापमान में वृद्धि को लेकर रिकार्ड्स का अध्ययन करने वाली यूएस की एक वैश्विक यूनिवर्सिटी, निकोलस कॉपरनिकस की रैंकिंग के हिसाब से विश्व स्तर पर औसत तापमान में हुई यह वृद्धि, साल 2015 और 2018 के आंकड़ो की तुलना में मामूली अंतर से पांचवे स्थान पर रहा। निकोलस कॉपरनिकस यूनिवर्सिटी के आंकड़ों के पैमाने वर्चुअल टाई में साल 2016 और 2020 विश्व भर के देशों के लिए सबसे गर्म वर्ष रहे।
निकोलस कोपरनिकस यूनिवर्सिटी के एक वरिष्ठ जलवायु वैज्ञानिक फ्रेजा वैंबोर्ग ने कहा ” उपग्रह माप के शुरूआती विश्लेषण में पाया गया है कि पिछले साल गर्मी के दौरान विश्व भर से 1,850 मेगाटन कार्बन उत्सर्जन हुआ है जो अब तक की कार्बन उत्सर्जन अध्ययन करने वाले आंकड़ों में सर्वाधिक है। इतनी भारी संख्या में कार्बन उत्सर्जन से जहरीली गैसों की सांद्रता में लगातार वृद्धि जारी रही और इस कारण से वैश्विक तापमान में अभूतपूर्व वृद्धि हुई।