चुनाव-2024: मुजफ्फरनगर में अदावत का तिलिस्म और जाट का ठाठ

मेरठ की सरधना विधानसभा (मुजफ्फरनगर लोकसभा का हिस्सा) से कई मर्तबा विधायक रहे ठाकुरों के बड़े हिंदूवादी नेता संगीत सिंह सोम 2022 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान के हाथों हार गये थे. संगीत सिंह सोम मानते है कि इस हार के पीछे का कारण मुजफ्फरनगर के सांसद और केन्द्रीय मंत्री संजीव बालियान है. पिछले दो साल में यह अदावत कई बार जमीन पर दिखी है और फिलहाल सरधना में बालियान का जबरदस्त विरोध हो रहा है.

बीजेपी के जाट और ठाकुर नेताओं के बीच यह मूंछ और वर्चस्व की लड़ाई है. अब लोकसभा चुनाव में सोम चौबीसी (ठाकुरों के 28 गांव) में यह अदावत रंग दिखा रही है. संजीव बालियान को गांव-गांव विरोध का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव से पहले भी ऐसा हुआ तब विरोध करने वालों (काले झंडे दिखाने पर) पर संजीव बालियान ने मुकदमे दर्ज करा दिये थे.

एक आरोप यह भी है कि मुजफ्फरनगर में हुई सेना की अग्निवीर भर्ती में ठाकुर चौबीसी के लड़के चयनित नही किये गये. ठाकुर चौबीसी के लोगो का कथित आरोप है कि संजीव बालियान ने अपनी बिरादरी के लड़कों को भर्ती कराने के लिए बालों की कटिंग के एक खास कोड में अपने अभ्यर्थी भेजे जिससे सभी को चयनित कर लिया गया और ठाकुरों के बच्चों को मौका तक नही मिला.

ऐसी और भी कई कहानियां है. संजीव बालियान पिछले कई महीनों से इन गांवों में जाने के लिए भारी मात्रा में पुलिस फोर्स का इस्तैमाल करते है. इन गांवों में विकास नही हुआ, यह भी आरोप है.

दो दिन पहले खतौली के एक ठाकुर बाहुल्य गांव में चुनाव प्रचार के दौरान संजीव बालियान के काफिले की गाड़ियों पर पथराव किया गया. दिन ढले का वक्त था. हंगामा मच गया. पुलिस मौके पर पहुंची और पुलिस अफसर भी. तमाम आधिकारिक बयान भी आये. सोशलमीडिया पर भी यह खबर खूब चली. मगर हैरत की बात यह है कि दो दिन बीतने पर भी इस मामले में अभी तक किसी के खिलाफ कोई मुकदमा नही लिखाया गया है. संजीव बालियान ने एक बयान में केस दर्ज कराने से इंकार कर दिया है.

यह अदावत अब दिल्ली, लखनऊ तक पहुंच गयी है.

रविवार को मेरठ की नरेन्द्र मोदी की चुनावी रैली में संजीव बालियान ने यह मुद्दा लखनऊ सरकार के सामने रखा. दोनों को आमने-सामने किया गया. कोशिश की गयी कि मामला निपटे. सोम ने साफ कहा कि पार्टी लाइन पर वह बीजेपी प्रत्याशी को सरधना में चुनाव लड़ा रहे है. बाकी विधानसभाओं के बारे में बालियान खुद जाने. इस दौरान भाषा को लेकर दोनो के बीच सख्त लहजे में कुछ तल्खी भी हुई.

पीएम की अगवानी के दौरान संगीत सोम को बड़ी सरकार का ‘बड़ा’ आशीर्वाद मिला है. संगीत सोम की पेट में धौल मारकर पीएम ने सिर पर हाथ फेरा और कहा- “यह मेरा शेर है, हीरो है”

बात अकेले इस अदावत की नही है. संजीव बालियान बीजेपी-रालोद की गठबंधन राजनीति का भी शिकार हो गये है. 2019 में चौधरी अजीत सिंह को हराने की उनकी उपलब्धि रालोद समर्थकों के लिए एक कलंक की तरह है. रालोद समर्थक मानते है कि आज के हालात जो भी हो लेकिन संजीव बालियान जाट होते हुए उनके चौधरी को हराने के आरोपी है. जयंत चौधरी के गठबंधन के खिलाफ भी सबसे ज्यादा मुखरता मुजफ्फरनगर में ही देखने को मिल रही है.

बालियान के सबसे मजबूत साथी उमेश मलिक बुढ़ाना विधानसभा से दंगा लहर में विधायक रहे लेकिन 2022 में वह चुनाव हार गये. किसानों और मुस्लिमों के प्रभाव वाली इस सीट पर रालोद-सपा गठबंधन ताकत बनकर उभर आया. इस सीट पर मुस्लिम-जाटों का गठबंधन इस बार भी सत्ता के खिलाफ है. यह सीट सरधना से सटी हुई है.

खतौली में भी जाट-मुस्लिम और ठाकुरों का दबदबा है. हाल ही में संजीव बालियान की कारों के काफिलें पर हमले की घटना के बाद वहां का मूड समझने के लिए किसी जटिल गणित को हल करने की जरूरत नही है.

त्यागियों के एक निर्दलीय उम्मीदवार और प्रजापति प्रत्याशी को हाथी पर बिठाकर खड़े करने से बीजेपी का वोटबैंक हिला हुआ है. दबी जुबान में संगीत सोम और हाथी वाले दारा प्रजापति की दोस्ती की चर्चा भी इलाके में आम है. कुल मिलाकर यही मुजफ्फरनगर का समीकरण है.

रविवार को हुई प्रधानमंत्री की रैली में 5 लोकसभाओं के वोटरों को फोकस किया गया था. पीएम का भाषण सुनकर कोई भी बता सकेगा कि मुजफ्फरनगर को इसमें कितनी तरजीह मिली.

मुख्यमंत्री ने जरूर कर्फ्यू और कांवड़ पर फोकस बनाये रखा लेकिन किसी भी बड़े नेता ने जमीनी मुद्दों को टटोलने की कोशिश नही की. मंच से ना ठाकुरों को संदेश है और ना ही उस ओबीसी वर्ग को जो दशकों से भगवा के साथ है. मगर इस बार टूटकर चकनाचूर हो रहा है. पूरा ध्यान भारत रत्न देने के बाद चौधरी चरणसिंह की विरासत वाले वोट को विपरीत विचारधारा की ओर खींचने पर रखा गया.

रालोद के कई विधायक गठबंधन को मजबूती देने के लिए सैकड़ों बसों में समर्थकों को लेकर आये. मगर जिस तरह की भीड़ राष्ट्रीय लोकदल की रैलियों में ट्रैक्टर-ट्रालियों पर दिखा करती थी वह इस रैली से नदारद थी. अपने साधनों से आने वाले किसान इस रैली में इस बार ‘चौधरी दर्शन’ को नही पहुंचे. यह चुनावी रैली केवल सत्ता की रैली बनकर रह गयी.

मंच पर रालोद मुखिया जयंत सिंह बाकी एनडीए नेताओं के साथ एक तरफ बिठाये गये थे. संजीव बालियान बीजेपी और एनडीए नेताओं की बॉर्डर लाइन थे. शायद इसीलिए देश-विदेश से आयी मीडिया के कैमरा फ्रेम्स में पीएम के साथ केवल बीजेपी के नेता ही दिखे.

प्रधानमंत्री को जब हल भेंट किया गया तो भूपेन्द्र चौधरी ने संजीव बालियान को आगे कर दिया. बालियान को जब जयंत ने हाथ लगाया तो बालियान ने जयंत को इशारा करके उन्हें हल की मूठ छूने का इशारा किया. वो जयंत चौधरी हल की मूठ को महज छूते हुए दिख रहे है जो कभी विपक्षी गठबंधन की तस्वीरों के बीचोंबीच मुख्य आकर्षण के केन्द्र बिन्दु के किरदार में दमदार नेता दिखा करते थे.

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