फारूक अब्दुल्ला अब मोदी के साथ! I.N.D.I.A गठबंधन में हो गया बड़ा खेला

गुरुवार यानी 15 फरवरी को फारूक ने इस बात की जानकारी देते हुए मीडिया से बातचीत की है। अपने बातचीत में उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान किया..

डिजिटल डेस्क: चुनाव सर पर हैं मगर I.N.D.I.A गठबंधन का अभी भी कुछ साफ़ नहीं है। एक के बाद एक लगातार छूट रहे साथी पार्टियों के चलते अब पक्ष के खिलाफ बने सबसे बड़े गठबंधन के ऊपर अब मुसीबतों के बादल चौतरफा घिरते नजर आ रहे हैं। अब इस सियासी समीकरण को एक और झटका देते हुए नेशनल कॉन्फ्रेंस के अध्यक्ष फ़ारूक़ अब्दुलाह ने भी अपनी दूरी बना ली है। गुरुवार यानी 15 फरवरी को फारूक ने इस बात की जानकारी देते हुए मीडिया से बातचीत की है। अपने बातचीत में उन्होंने अकेले चुनाव लड़ने का ऐलान करते हुए PM मोदी के तरफ दोस्ती का हाथ भी बढ़ाया है। अब फारूक के तरफ से दिए गए इस झटके के बाद I.N.D.I खेमे में भगदड़ तेज होती नजर आ रही है।  

PM और गृहमंत्री बुलाएंगे तो कौन बात नहीं करना चाहेगा- फारूक अब्दुल्ला (अध्यक्ष, नेशनल कॉन्फ्रेंस)

एक निजी मीडिया चैनल से बातचीत के दौरान राज्य के जम्मू-कश्मीर के पूर्व CM फारूक अब्दुल्ला ने कहा की, “मैं समझता हूं कि राज्य में विधानसभा और लोकसभा चुनाव एक साथ होंगे। ऐसे में जहां तक सीट शेयरिंग के फॉर्मूले की बात है तो मै आपको बता दूं कि हमारी पार्टी (नेशनल कॉन्फ्रेंस) अकेले चुनाव लड़ेगी और इस बात में कोई शक नहीं है। बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा कि. “मुझे देश के लिए जो करना पड़ेगा, वो करूंगा। इस बीच जब मीडिया संवाददाता ने जब उनसे प्रधानमंत्री और गृहमंत्री से मुलाकात पर सवाल पूछा तो उन्होंने कहा कि, “जब देश के प्रधानमंत्री और गृहमंत्री बुलाएंगे तो कौन बात नहीं करना चाहेगा।

I.N.D.I.A गठबंधन को सादमा

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल और पंजाब से लगे झटके के बाद INDIA गठबंधन का भविष्य पहले ही खतरे में नजर आ रहा था। इस बीच फारूक के तरफ से आये इस बयान से विपक्षी खेमे को बड़ा सदमा लग सकता है। सियासी जानकारों के अनुसार जब सभी विपक्षी दल एकजुट होकर NDA को चुनौती देने की कवायद में है, तब ऐसे समय पर नेशनल कॉन्फ्रेंस का पाला बदलने वाली राजनीती विपक्ष की रणनीति पर भारी पड़ सकती है। ऐसा माना जा रहा है कि विपक्ष के नेताओं के बीच आपसी मतभेद के चलते सब अपनी अलग चलाने में लगे हुए हैं। क्षेत्रीय दल अपने राजनीतिक हितों को साधने के लिए अलग राह अपनाने पर विचार कर रहे हैं। तो बड़े दल अपने अपने पार्टी के फायदों को सोच कर बगावत की राह पकड़ रहे हैं।

 

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