श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ का भव्य आयोजन, साध्वी मेरुदेवा भारती ने किया श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वाचन

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 6 अप्रैल से 12 अप्रैल तक दोपहर 1 बजे से सायं 4 चार बजे तक छविराम पैलेस, गणेशपुरा चौराहा, बडागांव हाईवे, मुरार, ग्वालियर में 'श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ' का भव्य आयोजन किया जा रहा है।

दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा 6 अप्रैल से 12 अप्रैल तक दोपहर 1 बजे से सायं 4 चार बजे तक छविराम पैलेस, गणेशपुरा चौराहा, बडागांव हाईवे, मुरार, ग्वालियर में ‘श्रीमद्भागवत कथा ज्ञान यज्ञ’ का भव्य आयोजन किया जा रहा है।

गुरुदेव आशुतोष महाराज (संस्थापक एवं संचालक, डीजेजेएस) की शिष्या भागवताचार्या महामनस्विनी साध्वी मेरुदेवा भारती ने पंचम दिवस में भगवान् श्री कृष्ण की बाल लीलाओं का वाचन करते हुए कहा कि प्रभु की प्रत्येक लीला हमारे समक्ष आध्यात्म के रहस्य को उजागर कर रही है l प्रत्येक मानव का मार्गदर्शन कर रही है l

जैसे प्रभु श्री कृष्ण की माटी खाने की लीला से प्रभु समझाना चाहते हैं कि वास्तव में यह माटी का शरीर ही मेरा मंदिर है जहाँ मैं निवास करता हूँ परन्तु आज सारा संसार ईश्वर को बहार ढूंढ रहा है कभी तीर्थों में, कभी कंदराओं में, तो कहीं पूजा , व्रत उपवास में , लेकिन हमारे संतों ने कहा- कस्तूरी कुण्डल बसे मृग ढूंढे वन माही l ऐसे घट घट राम हैं , दुनिया जाने नाहीं, अर्थात जिस प्रकार कस्तूरी हिरन के भीतर ही छिपी होती है परन्तु जीवन पर्यन्त वह उसे बाहर ही खोजता रहता है ठीक उसी तरह मानव शरीर के भीतर ही ईश्वर छिपा है परन्तु मनुष्य उसे बाहर खोजता रहता है और बिना ईश्वर की प्राप्ति किये ही इस संसार से चला जाता है और प्रभु भी स्वयं यही समझा रहे हैं l

मोको कहाँ तू ढूंढे रे बन्दे , मैं तो तेरे पास में , ना मैं जप में , ना मैं तप में , ना काबै कैलाश में

और आगे साध्वी जी ने कहा कि जिस प्रकार ईश्वर को प्राप्त करना मनुष्य के लिए इतना कठिन हैं परन्तु वहीं एक पूर्ण सतगुरु ईश्वर का दर्शन इसी देह के भीतर क्षण भर में ही करा देते हैं जैसे मीरा बाई श्री कृष्ण की अनन्य भक्त थीं उन्हें नहलाना, भोग लगाना, आरती करना वह सब कुछ किया करती थीं परन्तुं स्वयं भगवान् श्री कृष्ण स्वप्न में आकर उन्हें गुरु की शरण में जाने का आदेश देते हैं l और तब मीरा बाई संत रविदास की शरण में जाकर ईश्वर का दर्शन अपने भीतर करती हैं l

इतिहास में भी जितने भक्त हुए हैं उन्होंने भी पूर्ण सतगुरु की शरण को ग्रहण कर ही ईश्वर का साक्षातकार अपने भीतर किया तभी वे सच्ची भक्ति को अपने भीतर प्राप्त कर पाए थे l क्योंकि भक्ति का अर्थ है जुड़ना l भक्त का भगवान् से मिलन हो जाना l बिना ईश्वर दर्शन किये भक्ति संभव नहीं है l इसलिए यदि सच्ची व शाश्वत भक्ति को प्राप्त करना चाहते हैं तो पूर्ण सतगुरु की शरण में जाकर ब्रह्मज्ञान की प्राप्ति करनी होगी।

जिनके लिए संतों ने कहा -अखण्डमंडलाकारं व्याप्तं येन चराचरम्, ततपदम् दर्शितं येन तस्मै श्री गुरुवे नमः अर्थात परमात्मा चर अचर में समाया हुआ है कण कण में व्याप्त है और जो उन्हीं परमात्मा के तत्व के दर्शन कराएं वही पूर्ण सतगुरु हैं उन्हीं को नमन है l

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